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क्या मैं ईश्वर हूं?
वह एकान्त में बैठकर शान्त दिमाग से कोई अच्छी बात सोच पाएगा, लिख पाएगा। एकान्त इसलिए कि अच्छी बात पैदा हो सके । किन्तु जो भीतर में अकेला बन गया, उसके लिए सर्वत्र एकान्नवास है, कहीं भी एकान्त, भीड़ है ही नहीं।
यह अकेलापन ईश्वर है, अकेला होना ईश्वर है। जो अकेला होना जानता है, वह ईश्वर है। जो अकेला होना जानता है, वह आत्मज्ञानी है। जो अकेला होना जानता है, वह आध्यात्मिक है। जो अकेला होना जानता है, वह धार्मिक है।
धर्म का सबसे पहला और सबसे अन्तिम पाठ है अकेला होने की कला और अकेला होने का ज्ञान । हम लोग अकेला होना जानते नहीं। हम कभी-कभी एकांत में जाकर बठते हैं, कोई आदमी आसपास में नहीं होता, फिर भी स्मृतियों की भीड़ हो जाती है। इतनी स्मृतियां कि एक के बाद. एक स्मृति उभरती रहती है। कभी अकेले जाकर बैठते हैं तो कल्पनाओं की भीड़ हो जाती है। कई कल्पनाएं आस-पास में मंडराने लग जाती हैं और व्यक्ति को अकेला रहने ही नहीं देतीं। कभी विचारों की भीड़ हो जाती है । इतने विचार, इतने विकल्प कि एक के बाद एक विचार आता रहता है। आदमी अकेला हो ही नहीं पाता । तो हमारे चारों तरफ भीड़ ही भीड़ है। इन सारी भीड़ों के बीच यदि कोई अकेला हो पाता है तो बहुत सौभाग्य की बात है । वही व्यक्ति अकेला हो सकता है जिसने अपने आपको जानने का प्रयत्न किया है । ये कल्पनाएं मेरी नहीं हैं, स्मृतियां मेरी नहीं हैं, विचार मेरे नहीं हैं, सब के सब आरोपित हैं। मुझ पर अपना अधिकार जमाने के लिए आ रहे हैं। वास्तव में मेरे नहीं हैं । यह बात समझ में आ जाए तो इस भीड़ से बचा जा सकता है। ये क्यों आते हैं ? ये आते हैं मूर्छा के कारण । मूर्छा है; जागरूकता नहीं है, तो स्मृतियां आएंगी, कल्पनाएं: आएंगी, विचार आएंगे । और कुछ आयेंगे। जिस क्षण हम जागरूक बनेंगे, सब चले जायेंगे। घर का मालिक सोता है तो चोर घुस आते हैं और वहः जागता है तो चोर भाग जाते हैं । प्रश्न है जागरूकता का। जब हम कल्पनाओं, स्मृतियों और विचारों के प्रति जागरूक बनते हैं और उन विचारों को देखना शुरू करते हैं तो वे गायब होने लग जाते हैं। विचारों को देखना शुरू किया तो विचार बन्द, दरवाजा बन्द हो जाएगा और जिसने विचारों को नहीं देखा, शून्यता में रहा तो विचार अपना अड्डा जमा लेंगे। जागरूकता घटती है तो सब आकर अपना आसन बिछाने लग जाते हैं। मूल प्रश्न है जागरूकता का । जागरूकता आती है तभी व्यक्ति अकेला हो सकता है।
__ अकेलेपन का अनुभव शायद सबसे कठिन अनुभव है। दुनिया में और कोई बात इतनी कठिन नहीं है । आदमी कठिन से कठिन काम कर.
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