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द
जीवन की पोथी
जीवन है और एक भीड़ का जीवन है। ये दो प्रकार के जीवन हमारे लिए बहुत जानने योग्य हैं।
आज की समस्या है भीड़ का जीवन । समस्या से मुक्त होने का उपाय है अकेलेपन का जीवन । आदमी भीतर में अकेला होता है और बाहर में सबके साथ रहता है, वह है आत्मज्ञानी। जो भीतर में भीड़ में रहता है और बाहर में अकेला, बस अकेला, अपने लिए ही सब कुछ चाहता है। धन अपने लिए, संपत्ति अपने लिए, प्रतिष्ठा अपने लिए, पूजा अपने लिए, सब अपने लिए, वह होता है स्वार्थी । उसके भीतर इतनी भीड़ है, इतना कोलाहल है कि कहीं छुट्टी नहीं मिलती। सारे संस्कार, वासनाएं, कषाय-- सब भीतर में अड्डा जमाए बैठे हैं । वह भीड़ में जी रहा है। वह स्वार्थी व्यक्ति होता
एक आदमी ने मधुमक्खियां पालीं। कोई मित्र आया। उसने पूछा----- तुमने मधुमक्खियां पालीं, उससे क्या कोई लाभ हुआ? इतनी भीड़ बना ली तुमने, हजारों मधुमक्खियां ही मधुमक्खियां हैं। वह बोला --- उनसे बहुत लाभ मिला है। आजकल मेहमान बहुत कम आने लगे हैं। वह सोचता है कि बड़ा लाभ हुआ, मेहमानों की भीड़ कम होने लग गई। पर दूसरी भीड़ कितनी बढ़ गई ? स्वार्थी आदमी सोचता है कि दूसरा कोई न आए । अकेला ही में सब कुछ भोगूं, इसलिए वह भीड़ को पालता है। और भीड़ को पाले बिना वह अकेला नहीं बन सकता। किन्तु ध्यान की साधना करने वाला आत्मज्ञानी ऐसा कभी नहीं सोचता। वह दूसरों के लिए अधिकतम कल्याणकारी बनता है।
___ अपराध कौन करता है ? जो स्थार्थी होता है, वह अपराध करता है। आदमी अपने स्वार्थ के लिए, अपने स्व के लिए, अपने आपको भरने के लिए, स्वयं धनपति और सुखी होने के लिए, अनैतिकता करता है। शोषण करता है। यदि स्वार्थ हट जाए तो कोई मिलावट नहीं होगी, अप्रामाणिकता नहीं होगी, बेईमानी नहीं होगी, कुछ भी नहीं होगा। स्वार्थी कभी दूसरे की चिन्ता नहीं करता। किन्तु जो अकेला रहना जानता है, उसके मन में करुणा होती है, संवेदनशीलता होती है। उसे लगता है कि मैं जैसा हूं और मेरा स्वरूप जैसा है ---मुझे जो लगता है उसका मुझे अनुभव है। इस प्रकार का अनुभव दूसरे को भी हो सकता है। यह अनुभूति की तीव्रता अकेलेपन में आ सकती है, भीड़ में कभी नहीं आ सकती। जिसने सदा भीड़ का जीवन जीया, है, वह कभी अनुभव की गहराई में जा नहीं सकता। अनुभव की गहराई में वही व्यक्ति जा सकता है जिसने अकेलेपन का जीवन जीया है।।
कोई कवि है, लेखक है, साहित्यकार है, अच्छी रचना करनी है, वह एकांत खोजेगा। ऐसा स्थान कि जहां भीड़ न हो, कोलाहल न हो ।
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