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________________ जागरूकता : चक्षष्मान बनने की प्रक्रिया 'को हि तुलामधिरोहति शुचिना दुग्धेन सहज मधुरेण । तप्तं विकृतं मथितं, तथापि यत् स्नेहमुगिरती ॥' दूध को आपने देखा है, पीया है, किन्तु जागरूकता से नहीं पीया, केवल पीने के लिये पीया है या शरीर को पुष्ट करने के लिए पीया है या स्वाद के लिये पीया है या आदतवश पीया है। कवि कहता है-दूध जैसा पदार्थ मिलना मुश्किल है। दुनिया में ऐसा एक भी पदार्थ नहीं है जो दूध की तुलना कर सके । दूध शुचि है, सहज मधुर है । इसको तपाने पर, विकृत करने पर अर्थात् दही के रूप में जमा देने पर तथा मथने पर भी यह स्नेह देता है, मक्खन देता है। इतने कष्टों से गुजरकर भी इसमें स्नेहदान की अपूर्व शक्ति है । वैसी शक्ति अन्य पदार्थ में तो क्या, मनुष्य में भी नहीं है। हम बात करते हैं समाज को बदलने की। हर व्यक्ति सोचता है कि समाज बदले । यह उचित चिन्तन है। पर बदलाव तब तक नहीं आ सकता जब तक कि ताप को सहने की क्षमता, उत्पीड़न या हानि को सहने की क्षमता और मंथन को सहने की क्षमता नहीं आ जाती। तीनों क्षमताएं बहुत आवश्यक हैं बदलाव के लिये। पूरे समाज में समाज को बदलने की विभिन्न प्रक्रियाएं चल रही हैं । मार्स ने समाजवाद का सूत्र दिया। उसने 'कम्यून' की एक कल्पना की, साम्यवादी समाज की कल्पना की । ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें राज्य नहीं होगा। साम्यवाद का आदर्श है—राज्यविहीन राज्य । कल्पना तो है राज्यविहीन राज्य की और पूरा समाज जा रहा है कठोर नियंत्रण की दिशा में, जहां नियंत्रण ही नियंत्रण लादा जा रहा है। हमारी दृष्टि में एक भ्रम पैदा हो गया। बदलने की बात जहां से शुरू होनी चाहिए, वहां से नहीं हो रही है। बदला जा रहा है अर्थतंत्र को। बदला जा रहा है राजतंत्र को। बदला जा रहा है व्यवहार तंत्र को। जिसे बदलना है उसे नहीं बदला जा रहा है। जब तक मूल बदलने वाला नहीं बदलता, तब तक बदली हुई चीजें भी असर नहीं दिखा पाएंगी। बदलने वाला बदलना चाहिए। समाज परिवर्तन के लिए पहली आवश्यकता है चक्षु की निर्मलता। आंख चाहिए। आंख वाला चाहिए। चक्षुष्मान् व्यक्ति चाहिए। वही समाज को बदल सकता है। चक्षुष्मान् सचाई को देखता है । सचाई को वही व्यक्ति देख सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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