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क्या ज्ञान ईश्वर है ?
___ चीन का एक प्रसंग है। अधिकारी का नाम था चाईसेन । एक व्यापारी उसके पास आकर बोला ... 'मेरा अमुक कार्य है। आप उसको पार लगा दें। यह रहा पत्र-पुष्पम् ।' अधिकारी ने देखा कि व्यापारी उपहार में बहुत धनराशि दे रहा है। मन ललचाया। पर ज्ञान का अंकुश था । अधिकारी बोला.... 'भाई ! तुम्हारी बात मान लेता और यह उपहार भी ले लेता, पर करूं क्या, यह बात तीन को ज्ञात हो गई। बात छह कानों तक पहुंच गई । जो बात छह कानों तक पहुंच जाती है, वह प्रचारित हुए बिना नहीं रहती। मैं क्षमा चाहता हूं।' व्यापारी बोला - 'आप और मेरे सिवाय कोई इस बात को नहीं जानता। चार कानों तक सीमित है यह बात छह कान नहीं जानते ।' अधिकारी बोला -- 'नहीं, तीन को पता है। एक तुम जानते हो, दूसरा मैं जानता हूं और तीसरा परमात्मा जानता है । जो बात तीन तक पहुंच जाती है, वह नियन्त्रित नहीं रहती।'
अधिकारी ने आती हुई लक्ष्मी को ठुकराया । जो संपत्ति अनायास आ रही थी, अधिकारी ने उसे नकार दिया। आज की भाषा में यह उस अधिकारी की मूर्खता कही जाएगी और अधिकारी को मूर्ख कहा जाएगा। पर हम सोचें । उसने उस संपदा को ठुकराया क्योंकि उसका ज्ञान मूर्छा से आवृत नहीं था, मोह से ग्रस्त नहीं था। वह ज्ञान उसे मंत्री और अनासक्ति की ओर अग्रसर करने वाला था । ऐसा ही ईश्वर होता है।
जो ज्ञान आसक्ति की ओर ले जाता है, वह ज्ञान व्यवहार की भाषा में भले ही ज्ञान कहा जाए, पर परमार्थतः वह अज्ञान है । अज्ञान से कोई भी आदमी प्रकाश की ओर नहीं जा सकता। अज्ञान अन्धकार है। अंधकार अंधकार की ओर ही ले जाता है, प्रकाश की ओर नहीं। कांच प्रतिबिम्ब का साधन है. पर जब कांच अंधा हो जाता है तो वह प्रतिबिम्ब को नहीं पकड़ सकता। बल्ब प्रकाश की अभिव्यक्ति में साधन बनता है, पर जब उसका फिलेमेंट टूट जाता है तब वह अर्थहीन हो जाता है । इसी प्रकार ज्ञान प्रकाश देता है, पर जब वह मूर्छा से आवृत होता है, तब वह अन्धकार ही दे सकता है, प्रकाश नहीं।
आज का युग कम्प्यूटर का युग है। ज्ञान का बहुत विकास हुआ है । व्यवहार के सारे कार्य कम्प्यूटर देता है, कम्प्यूटर चालित यंत्र-मानव कर देता है। घर की सफाई, कपड़ों की धुलाई, कार का संचालन, कार में पेट्रोल की कमी की सूचना, खतरे की सूचना आदि-आदि कम्प्यूटर से सहज प्राप्त हो जाती है। विज्ञान की कितनी प्रगति ! ज्ञान का कितना विकास ! किन्तु इतना होने पर भी क्या मैत्री और करुणा का विकास हुआ है ? क्या आदमी आदमी के साथ मैत्रीपूर्ण जीवन बिता रहा है ? क्या अणु अस्त्रों का और भयंकर कीटाणुओं का निर्माण नहीं हो रहा है ? क्या आदमी को मारने की
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