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________________ १७२ जीवन की पोथी में बहुत महत्त्वपूर्ण है । दोनों में संघर्ष है। इस संदर्भ में भगवान् महावीर ने सुन्दर दृष्टि दी। उन्होंने कहा प्रत्येक पदार्थ को दो दृष्टियों से देखो। एक है व्यवहारनय की दृष्टि और दूसरी है निश्चयनय की दष्टि । एक द्रव्याथिक दृष्टि है और एक पर्यायार्थिक दृष्टि है । पर्याय की दृष्टि का अर्थ है- व्यवहारनय । पर्याय बदलते रहते हैं, अवस्थाएं बदलती रहती हैं। यह भी एक सचाई है। हम इसे मिथ्या न मानें। निश्चय भी सचाई है और व्यवहार भी सचाई है। संसार का सबसे बड़ा झूठ है एकांगी दृष्टिकोण । समाज के बिना किसी का जीवन नहीं चल सकता और अकेले हुए बिना कोई साधना नहीं कर सकता। दोनों में संगति बिठाई महावीर ने । उनका सूत्र है-व्यवहार और निश्चय नय की धारणा। दोनों का सामंजस्य आवश्यक है। दोनों को जोड़कर देखो, तोड़कर नहीं। दुनिया व्यवहार से चलती है । साधक का जीवन भी व्यवहार से चलता है। निश्चय से जीवन नहीं चल सकता । निश्चय में सत्य है केवल आत्मा। उसी का अनुभव । न खाना, न पीना । ऐसा संसार नहीं चल सकता । शरीर है तो उसे पोषण भी देना होगा। हम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सोचें, शरीर-विज्ञान और पोषणशास्त्र की दृष्टि से देखें । मष्तिस्क को उसके उपयुक्त पोषण मिलेगा तो वह सोच सकेगा, विचार कर सकेगा, साधना कर सकेगा। यदि मस्तिष्क को पोषण नहीं मिलेगा तो वह विचार नहीं कर पाएगा । उसकी क्षमता नष्ट हो जाएगी। यदि मन से काम लेना है, बुद्धि से काम लेना है, चिंतन करना है, आत्मा के विषय में या परमात्मा के विषय में सोचना है तो वे ही सोच पाते हैं जिनका मस्तिष्क अधिक शक्तिशाली है, पुष्ट है। जिसका मस्तिष्क दुर्बल होता है वह दो क्षण के चिंतन से भारी हो जाता है। उसे सोचना बन्द करना होता है, या चितन स्वयं अवरुद्ध हो जाता है । इस प्रकार शरीर का पोषण व्यवहारनय से जुड़ी बात है। भगवती सूत्र का प्रसंग है । भगवान् महावीर ने साढ़े बारह वर्ष तक साधना का कठोर जीवन जीया । उनका शरीर रूखा-सूखा हो गया। कठोर तपस्याएं की। कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् भगवान् ने प्रतिदिन आहार करना शुरू किया और उनका शरीर तेजस्वी बन गया । वे सुन्दर लगने लगे । पोषण मिलने पर शरीर सुन्दर एवं हृदय-पुष्ट होता है । स्वस्थ होता है । पोषण के अभाव में सौन्दर्य नष्ट हो जाता है, स्वास्थ्य गिर जाता है। ये सारी व्यवहार की बातें हैं । यह भी सचाई है। ___ सामाजिक जीवन जीते हुए भी, सबके साथ रहते हुए भी आदमी अकेला रह सकता है । अकेला होने का अर्थ है-साधना। भगवान् महावीर ने अनुभव की वाणी में कहा-साधना गांव में भी हो सकती है और अरण्य ई . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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