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क्या ज्ञान ईश्वर है ?
गाय का दूध होता है और बकरी का भी दूध होता है । इन प्राणियों ही नहीं, आक और थूहर का भी दूध होता है । सब दूध सफेद होता है ।
पूछा जाए कि क्या दूध प्रोटीन देने वाला है ? पोषण और जीवनस्व देने वाला है ? इसका उत्तर विभज्यवाद के आधार पर ही दिया जा कता है । एक भाषा में इसका उत्तरन हीं दिया जा सकता। दूध पोषक भी : सकता है और मादक भी हो सकता है। यदि कोई गाय के दूध के बदले क का दूध पी जाए तो वह मर जाएगा । दूध मारक भी होता है।
प्रश्न है कि क्या ज्ञान ईश्वर है ? इसका भी उत्तर एक भाषा में नहीं या जा सकता। विभज्यवाद के आधार पर ही इसका उत्तर हो सकता है। नि ईश्वर भी है और नहीं भी है। ज्ञान ईश्वर के निकट ले जाने वाला । है और ईश्वर से दूर ले जाने वाला भी है। ज्ञान का स्वरूप एक नहीं है सकी प्रकृति भी एक नहीं है।
जिससे जाना जाता है, वह ज्ञान है। यह ज्ञान की परिभाषा है। कन्तु संदर्भ के आधार पर ज्ञान का अर्थ बदल जाता है, उसका तात्पर्य बदल Tता है। आध्यात्मिक पुरुषों ने उस ज्ञान को अज्ञान कहा है जो राग-द्वेष को ढ़ाता है। उनकी दृष्टि में वही ज्ञान ज्ञान है जो राग-द्वेष को कम करता है, त्री को बढ़ाता है । वीतरागता और मैत्री को वृद्धिंगत करने वाला ज्ञान ही गान है और वही ईश्वर है।
आज की सारी समस्या ज्ञान की समस्या है। आज मैत्री को बढ़ाने ला या राग-द्वेष को कम करने वाला ज्ञान कम मिलता है, संघर्ष को बढ़ाने गाला और राग-द्वेष को पनपाने वाला ज्ञान अधिक मिलता है । यह एक यंकर समस्या है।
आजीविका को चलाने और तथ्यों को जानने के लिए बौद्धिक ज्ञान जरूरी है, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जहां आजीविका का प्रश्न है वहां गणित, भाषा, तर्क, विज्ञान और शिल्प का ज्ञान जरूरी होता है । परन्तु वह ज्ञान ईश्वर या आत्मा की ओर ले जाने वाला नहीं है, वीतरागता की ओर ले जाने वाला नहीं है। उस ज्ञान के आधार पर जो लोग जी रहे हैं, उन्होंने बहुत सारी समस्याएं पैदा की हैं और कर रहे हैं। उनके कारण अप्रामाणिकता, अनैतिकता, भ्रष्टाचार, दमन, शोषण-ये सारे चलते हैं। इन दोषों का मूल आधार वह ज्ञान ही है। जिनका बौद्धिक विकास अच्छा
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