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शक्ति-विकास और शक्ति प्रदर्शन
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__ आदमी दूसरों को देखकर अपने को देखता है। वह स्वयं कभी अपने को नहीं देखता। स्वास्थ्य को तोलेगा तो दूसरों के आधार पर, संपन्नता को देखेगा तो दूसरे के आधार पर। वह दूसरों को देखकर ही स्वयं को तोलेगा।
शेखसादी बड़े फकीर थे । वे जा रहे थे। रास्ते में एक भिखारी बैठा था। शेखसादी ने देखा, वह अत्यन्त प्रसन्न और प्रफुल्लित है। उसके चेहरे पर कहीं चिन्ता की रेखा नहीं है। भिखारी को देखकर स्वयं को देखा, सोचा, मैं एक संत हूं, चिंतक और विचारक हूं, फिर भी दिनभर उदास रहता हूं, चिता ही चिंता । और एक यह भिखारी है जो अभाव में जी रहा है, खाने को न पूरा भोजन मिलता है, न इसके पास मकान और पूरे कपड़े ही हैं । अरे, यह तो विकलांग है। पैर भी नहीं हैं। फिर भी यह इतना खुश है ! मैं भाव में जीता हुआ भी दुःखी हूं और यह अभाव में जीता हुआ भी सुखी है। रहस्य क्या है।
शेखसादी ने भिखारी के पास आकर पूछा-~~अरे भाई ! तुम इतने अभावग्रस्त हो, फिर भी प्रसन्न कैसे ? भिखारी बोला--मैंने जीवन का एक मंत्र सीखा है कि अभाव को नहीं देखना । मैं सोचता हूं, पैर नहीं तो क्या, ईश्वर ने मुझे दिमाग तो अच्छा दिया है ! मैं दिमाग को देखकर परम प्रसन्न रहता हूं और मुझे पैरों का अभाव कभी नहीं खटकता।
शेखसादी ने रहस्य को समझ लिया।
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं। एक वे जो निरन्तर अभाव को ही देखते रहते हैं और एक वे जो भाव को देखते रहते हैं। अभाव को देखने वाला, अपार संपत्ति का स्वामी होने पर भी सदा दुःखी रहता है और भाव को देखने वाला, पास में कुछ भी न होने पर भी सदा सुखी रहता है, आनन्दित रहता है।
आज अभाव के दृष्टिकोण वाले लोग अधिक हैं। पचास लाख की संपत्तिवाला जब करोड़पति को देखता है तो सोचता है, अरे ! मैं तो पीछे रह गया। यह सोचकर वह निरन्तर दुःख का अनुभव करता रहता है। जिसके पास करोड़ है, वह सोचता है, अरे, मेरे पास है ही कितना ! अमुक व्यक्ति के पास अरब की संपत्ति है। वह भी दुःख का संवेदन करता है। आदमी सदा अभाव को देखता है, भाव को नहीं देखता, उसके दुःख को भगवान् भी नहीं मिटा सकते । आनन्द उसी को प्राप्त होता है जो भाव को देखकर जीता है। जिसका मानस प्रकाश से भर गया वह कभी अभाव को नहीं देखेगा, भाव को ही देखेगा।
आचार्य ने शिष्य से पूछा- 'तुम जनपद विहार करोगे और लोग तुम्हें गालियां देंगे, तब तुम क्या करोगे ?' शिष्य बोला-मैं सोचूंगा, कोई
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