________________
१५०
जीवन की पोथी
है। जो आत्मा की रक्षा करता है, वही दूसरों की रक्षा कर सकता है। रक्षा का मर्म समझे बिना केवल दूसरों की रक्षा की बात करना एक भ्रम है, मायाजाल है।
. प्रेक्षाध्यान का मूल सूत्र है-आत्म-रक्षा। अपने आपको बुराइयों से बचाओ, बुरे विचारों से बचाओ, बुरी भावनाओं से बचाओ, तब आत्म-रक्षा होगी । उस स्थिति में उस शक्ति का विकास होगा, जिस शक्ति के द्वारा किसी का अनिष्ट नहीं होता। एक शक्ति का प्रयोजन होता है उठाना और एक शक्ति का प्रयोजन होता है गिराना। हमें उस शक्ति का विकास करना है जिससे उठाने का प्रयोजन सिद्ध हो । जहां दूसरों को गिराने की बात आती है वहां जो प्राप्य है वह नहीं मिलता। आदमी प्रकाश चाहता है, अन्धकार नहीं। प्रकाश तब प्राप्त होगा जब दूसरों को उठाने की शक्ति का विकास होगा । जहां दूसरों के लिए अवरोध पैदा किया जाता है वहां प्रकाश प्राप्त नहीं होता, वहां अन्धकार ही मिलता है।
जीवन के तीन बहुमूल्य घटक हैं-प्रकाश, आनन्द और स्वास्थ्य । हम शक्ति का ऐसा नियोजन करें कि जिससे ये तीनों प्राप्त हो जाएं । जिस व्यक्ति के जीवन में प्रकाश नहीं होता वह न तो स्वस्थ रह सकता है और न आनन्द का जीवन जी सकता है। आंखें प्रकाश की प्रतीक हैं। जिसे ये प्राप्त नहीं हैं, उसके लिए सारा संसार अंधकारमय है, सारे पदार्थ व्यर्थ हैं ।
प्रकाश आवश्यक है। एक है अपना प्रकाश और दूसरा है सूर्य का प्रकाश । ये दोनों होते हैं और यदि विवेक का प्रकाश न हो तो भी कुछ नहीं बनता । विवेक-चक्षु का उद्घाटित होना बहुत आवश्यक है।
चोर चोरी कर घर से आभूषणों की पेटी ले गया। मालिक ने पहरेदार से पूछा, तब उसने कहा-'मालिक ! मैं जानता हूं कि चोर पेटी ले गया । मैं जागता था। मैंने उसे नहीं रोका, क्योंकि पेटी पर ताला जड़ा हुआ था और चाबी आपके पास थी। मैंने सोचा-वह चाबी लेने वापस आएगा तब पकड़ लंगा।'
जिसमें विवेक की आंख उद्घाटित नहीं होती, वह ऐसे गलत निर्णय ले लेता है।
दुनिया में सुख पाना बहुत कठिन बात है। आदमी सुख की सामग्री उपलब्ध कर सकता है, पर सुख पाना उसके वश की बात नहीं है । प्रायः धनाढ्य व्यक्तियों के पास सुख-सामग्री की कमी नहीं है। उसमें से कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो वास्तव में सुख का अनुभव करते हों। वे निरंतर दुःख भोगते हैं। जितना है, उससे सुख नहीं पा रहे हैं, जितना नहीं है, उससे दुःख पा रहे हैं । अभाव का दुःख उन्हें कष्ट देता है। भाव का सुख नहीं, अभाव का दुःख है । बड़ी विचित्र स्थिति है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org