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काम-शक्ति का विकास
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करता है, काम को उभारता है। आचारांग आगम में ब्रह्मचर्य का साधनासूत्र है निर्बल भोजन । आज की भाषा में इसे केलोरी वाला भोजन कहा जा सकता है। ज्यादा केलोरी खाना अच्छा नहीं है। पोषण भर हो जाए और वह भी संतुलन के साथ, इतना पर्याप्त है।
आज का आदमी बहुत पढ़ता-लिखता है, सोचता-समझता है। वह सब कुछ करता है, पर अपने जीवन के बारे में बहुत कम सोचता है, स्वास्थ्य के विषय में बहुत कम चिंतन करता है। यदि वह स्वास्थ्य को केन्द्र में रखकर जीवन जीना चाहता है तो उसे आहार-संयम और काम-संयम की शिक्षा लेनी होगी।
___ काम-असंयम का मुख्य परिणाम है स्नायु-दौर्बल्य, रोग-प्रतिरोधात्मक शक्ति का ह्रास । स्नायविक दुर्बलता, डिप्रेशन आज की मुख्य बीमारी है और इसका मुख्य कारण है काम की अति । लोगों ने एक बात पकड़ ली कि इच्छा का दमन मत करो। अरे भाई ! दमन नहीं तो शमन तो करो। दमन का अर्थ है शमन । दूध उफन रहा है। पानी के छींटे दिए और उसका उफान शांत हो जाता है। यह उपशमन है। हमें उपशमन को जानना है। दूसरे शब्दों में हमारी विवेक चेतना का पूर्ण जागरण होना चाहिए । इन्द्रियां अपनी मांगें प्रस्तुत करती हैं । यह विवेक होना बहुत जरूरी है कि कौनसी मांग पूरी की जाए और किसको नकारा जाए।
प्रेक्षाध्यान का प्रयोग इस विवेक-जागरण में सहयोगी बनेगा और आपका जीवन-पथ आलोकित होकर नया प्रकाश देगा।
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