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________________ काम शक्ति का विकास १४३ होता, वे गलत आचारणों में फंसकर अपनी शक्ति को क्षीण कर देते हैं। फिर वे बहुत पश्चाताप करते हैं। - आज एक चर्चा चल रही है कि बच्चों को काम-शिक्षा दी जाए या नहीं? कुछ लोग इसका समर्थन करते हैं और कुछ विरोध । दोनों के पास अपने-अपने तर्क हैं । तर्क का कहीं अन्त नहीं है । मैं मानता हूं कि प्रत्येक को काम-संयम की शिक्षा मिलनी चाहिए । आदमी को रोटी खाने के लाभअलाभ का ज्ञान न हो तो वह मूर्खता ही कही जाएगी। जो भी वह काम करे, उसका ज्ञान आवश्यक होता है । ज्ञान होने पर आदमी लाभ की ओर प्रवृत्त होगा, अलाभ से बचेगा । यौन-शिक्षा देना हानिकारक नहीं लगती, बचाव की बात अधिक हो सकती है । यौन-शिक्षा के साथ-साथ यौन-संयम की बात जोड़ दी जाए तो हानियां कम होंगी, बचाव अधिक होगा । बहुत कम लोग जानते हैं कि अति-काम से क्या-क्या हानियां होती हैं। असमय में काम-सेवन से अनेक हानियां होती हैं, यह ज्ञान होना आवश्यक है। कामसेवन के लिए समय की मर्यादा है, अवस्था की सीमा है। देश और काल की भी सीमा है । जो इन सारी बातों को नहीं जानता, वह शीघ्र ही जीवन को खोखला बना देता है, शक्ति-शून्य कर देता है। उसकी दिमागी शक्ति क्षीण हो जाती है । वह ऐसे उन्माद में चला जाता है जहां प्रतिशोध, ईर्ष्या, प्रतिक्रिया और विद्रोह की भावना जागती है। फ्रायड कहता है कि मनुष्य के जीवन में काम-शक्ति आदि से अन्त तक रहती है । आदमी जीवन पर्यन्त कामैषणा में रत रहता है और येनकेन प्रकारेण कामसुख पाना चाहता है। इसलिए फ्रायड का यह दृढ़ कथन है कि काम-वासना का दमन नहीं होना चाहिए। फ्रायड के इस सिद्धांत ने कुछ सचाई प्रकट की है तो कुछ भ्रांतियां भी पैदा की हैं । भ्रांतियों के कारण समाज में उच्छंखल यौनाचार चल पड़ा । कामुकता इतनी बढ़ गई कि उनके भयंकर परिणाम समाज भोग रहा है । पूरा समाज घबरा गया है और वह त्राण के लिए इधर-उधर देख रहा है। इस यौनाचार ने अनेक बीमारियों को जन्म दिया है । 'एड्स' का रोग उसी का एक परिणाम है। आज अनेक लोग इस रोग से पीड़ित हैं और इसका मुख्य कारण माना गया है समलैंगिक व्यभिचार, अप्राकृतिक मैथुन । आज इसका त्राण इतना है कि आदमी जितना केन्सर से नहीं डरता, उतना इस ‘एड्स' की बीमारी से डरता है । केन्सर छूत का रोग नहीं है । डाक्टर बड़े उत्साह से उसकी चिकित्सा करता है। परन्तु 'एड्स' छूत का रोग है । कोई डाक्टर उस रोगी की चिकित्सा करना नहीं चाहता। यदि विद्यालय में पता लग जाए कि अमुक विद्यार्थी 'एड्स' के रोग से आक्रांत है तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाता है । जिस किसी को यह रोग लग गया, उसे बुरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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