SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काम शक्ति का विकास जीवन का विकास क्रमिक विकास है । एक बच्चे में भी सारी शक्तियां होती हैं, पर उनका विकास समग्रता से नहीं होता। जैसे-जैसे अवस्था का परिपाक होता है, वैसे-वैसे शक्तियां विकसित हो जाती हैं । जीवन की पहली अवस्था बचपन (१-१० वर्ष) में अनेक शक्तियां अव्यक्त रहती हैं। दूसरी अवस्था (११-२०) में कुछ शक्तियां विकसित होती हैं । क्रीड़ा की शक्ति का पूरा विकास हो जाता है। तीसरी अवस्था (२१-३० वर्ष) में कामशक्ति का पूरा विकास हो जाता है और तब व्यक्ति 'समत्थो भंजिउं भोगाई'-भोग भोगने में समर्थ हो जाता है । बीस वर्ष से पूर्व इस कामशक्ति का विकास नहीं होता। वैदिक परम्परा में जीवन के सौ वर्षों को चार भागों में बांटा है। उनके आधार पर चार आश्रमों की कल्पना की है । प्रत्येक आश्रम के पचीसपचीस वर्ष निर्धारित हैं १. ब्रह्मचर्य आश्रम-२५ वर्ष २. गृहस्थ आश्रम -२५ वर्ष ३. वानप्रस्थ आश्रम-२५ वर्ष ४. संन्यास आश्रम-२५ वर्ष जैन परम्परा में सौ वर्ष के जीवन को दस भागों में विभक्त किया गया है, प्रत्येक विभाग का कालमान दस-दस वर्ष का है। जीवन की तीसरी अवस्था (२१-३० वर्ष) में कामशक्ति का विकास होता है । इसका तात्पर्य है कि प्रथम बीस वर्ष तक पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है। यह संन्यासी बनने की पूर्व भूमिका के रूप में उल्लिखित नहीं है, किन्तु प्राकृतिक स्थिति के आधार पर यह निरूपण है । बीस वर्ष तक कामशक्ति का पूर्ण विकास नहीं होता। काम-सेवन के लिए वह अपरिपक्व अवस्था है। इस अपरिपक्व अवस्था में यदि कोई व्यक्ति कामसेवन की दिशा में चला जाता है तो वह जीवन के प्रति न्याय नहीं करता। उसकी जीवनी-शक्ति चक जाती है । फल जब तक पक नहीं जाता, वह मीठा नहीं होता । अपक्व फल कषेला होता है, खट्टा होता है । पकने पर ही उपयोगिता बढ़ती है। यह जान लेना आवश्यक है कि बीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन क्यों किया जाए । जब तक किसी भी लड़के-लड़की को कामशक्ति का ज्ञान नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy