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नए मस्तिष्क का निर्माण
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अच्छा नहीं है । आचार्यश्री ने सुना फिर कहा-यह गलत मान्यता है । हम तो उसी बहिन का शकुन लेकर विहार करेंगे । एक विधवा बहिन, जो अपने धर्म पर चलती है, सदाचार और कुलाचार का पालन करती है, वह तो और अधिक पवित्र होती है। उसका अपशकुन कैसे माना जाए ?
दिमाग में न जाने ऐसी कितनी धारणाएं भरी पड़ी हैं। इन धारणाओं से संकीर्ण इस मस्तिष्क में यथार्थ का पता नहीं चलता। जब व्यक्ति भीतर में उतर कर इनको देखता है तब सचाई प्रकट होने लगती है, मस्तिष्क भारशून्य होता है।
जीवन-परिवर्तन की प्रक्रिया है ध्यान । इससे धारणाएं बदलती हैं। जब धारणाएं बदलेंगी तो मस्तिष्क बदलेगा। मस्तिष्क बदलेगा तो व्यक्तित्व बदलेगा। व्यक्तित्व के बदलने पर समाज बदलेगा।
एक शब्द में कहा जा सकता है कि परिवर्तन के लिए मस्तिष्क के नव निर्माण की अत्यन्त आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति को इसका अनुभव करना चाहिए।
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