________________
क्या ईश्वर हैं ?
की शक्ति, साहस और पराक्रम का उदय होता है। जिसका नाभि-स्थल विकसित नहीं होता, वह कायर, दुर्बल और पराक्रमहीन होता है। जो शक्तिहीन होता है वह कुछ भी नहीं कर पाता। अतः तप के आराधना क्षेत्र को जागृत करना आवश्यक है।
पांचवां है वीर्य-पराक्रम । शक्तिकेन्द्र और स्वास्थ्यकेन्द्र-दोनों वीर्य की आराधना के क्षेत्र हैं। जिसने शक्तिकेन्द्र या स्वास्थ्यकेन्द्र, जो जननेन्द्रिय का स्थान है, उसे ठीक से नहीं समझा वह शक्तिशाली नहीं बन पाएगा। वह जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएगा । आज यौवन को चिरस्थायी बनाने और बुढ़ापे के न आने की खोज चल रही है । अनेक वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जिनका अण्डकोश शक्तिशाली नहीं होता वे दुर्बल होते हैं । अनेक लोग बूढ़े होने पर अण्डकोश का प्रत्यारोपण करवाते हैं। बन्दरों के अण्डकोशों का प्रत्यारोपण होता है, उससे पुन: नई शक्ति का संचार होता है। प्रचंड कामुकता या अत्यन्त कामवासना के कारण यह "पेलरिक" प्रदेश कमजोर हो जाता है। उसकी कमजोरी अर्थात् शक्तिकेन्द्र की कमजोरी का अर्थ है मस्तिष्क और स्नायु-संस्थान की कमजोरी। जिसका स्नायु-संस्थान कमजोर बन गया, वह ज्ञान, दर्शन और आनन्द का विकास कैसे कर पाएगा? वह तप का विकास भी कैसे करेगा ? रूपक की भाषा में कहा जा सकता है कि जिस पेड़ की जड़ें सूख गई उस पेड़ को कितना भी सींचो, शाखाओं और तने को सींचो, वह कभी हरा-भरा नहीं हो सकता। वह धराशायी हो जाएगा । नाभि से नीचे का भाग हमारी जड़ है। जिसकी यह जड़ कमजोर हो गई, वहां के स्नायु कमजोर हो गए, वह आदमी कुछ भी नहीं कर पाएगा। सारा सिंचन मिलता है नीचे से । मस्तिष्क को सिंचन मिलता है नीचे से । शीर्षासन और सर्वांगासन मस्तिष्क को सिंचन देते हैं। यह विपरीतकरणी है। नीचे से ऊपर सिंचन मिलता है। जब सिर को शक्ति देनी होती है तब पैर ऊपर और सिर नीचे किया जाता है। यही शीर्षासन और सर्वांगासन में होता है। जिसने वीर्य-आचार को उचित रूप में नहीं समझा, स्वास्थ्यकेन्द्र और शक्तिकेन्द्र को ठीक ढंग से आराधना नहीं की, वह कभी शक्ति-संपन्न नहीं हो सकता । शक्ति के बिना ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की आराधना नहीं की जा सकती।
मस्तिष्क बुद्धिशक्ति का केन्द्र है । भृकुटि अन्तर्दष्टि और परिवर्तन का स्थान है । आनन्दकेन्द्र चारित्र को पोषण देता है । तैजसकेन्द्र तेजस्विता और मनोबल का केन्द्र है। स्वास्थ्यकेन्द्र और शक्तिकेन्द्र-ये हमारी सृजनात्मक शक्ति के केन्द्र हैं। इन पांच केन्द्रों की आराधना करने का अर्थ उन पांच आचारों का अनुशीलन करना है । ये केन्द्र पांच आचारों के संवादी हैं। ज्ञान का संवादी केन्द्र है-चोटी का स्थान । दर्शन का संवादी केन्द्र है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org