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स्कूल में सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। क्या उनमें एकता और समता है ? उनमें आचरण की तरतमता है, व्यवहार और ज्ञान की तरतमता है । यह तरतमता क्यों है ? यदि सामाजिक वातावरण ही कारण होता तो सबके सब बच्चे समान होते। एक बच्चा दस वर्ष की अवस्था में महान् कवि बन जाता है । एक बच्चा उसी अवस्था में महान् दार्शनिक या संत बन जाता है । वातावरण और सामाजिक संदर्भ समान होने पर भी इतना अन्तर आ जाता है । इससे यह स्पष्ट है कि सामाजिक संदर्भ या वातावरण ही सब कुछ नहीं है । बच्चा पूर्वं संस्कार - बीज लेकर आता है । उसमें क्षमताएं हैं । वे क्षमताएं सामाजिक संदर्भ में प्रकट होती हैं और कभी-कभी ये विशेषताएं अतिरिक्त रूप में प्रकट हो जाती हैं। सबमें ऐसा नहीं होता । अतिरिक्त रूप में ऐसा हो सकता है ।
यदि आत्मा वैसे ही एक बच्चा
राजप्रश्नीय आगम में एक प्रसंग है । राजा प्रदेशी ने कहा- क्या बलवान्, शक्तिशाली और कला कुशल तरुण बाण फेंक सकता है ? केशी स्वामी ने कहा – हां, वह बाण फेंक सकता है। प्रदेशी ने फिर पूछा -- तो क्या बच्चा बाण फेंक सकता है ? केशी ने कहा- बच्चा बाण नहीं फेंक सकता । प्रदेशी ने कहा - तो फिर आत्मा समान कहां है ? समान होती तो जैसे एक युवक धनुष्य से बाण फेंकता है, भी बाण क्यों नहीं फेंक सकता ? केशी बोले- प्रदेशी ! सकता है, पर यदि धनुष्य की जिह्वा टूटी हुई हो, तो क्या बाण फेंका जा सकेगा ? प्रदेशी बोला- नहीं ! केशी ने पूछा- क्यों ? प्रदेशी बोला'उपकरण पर्याप्त नहीं हैं । धनुष्य टूटा हुआ है, उपकरण अपर्याप्त हैं । जब तक सारे उपकरण ठीक नहीं होते, तब तक कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता ।' केशी ने कहा- राजन ! तुम ठीक कहते हो । एक बच्चा नहीं फेंक सकता, क्योंकि उसके उपकरण पर्याप्त नहीं हैं ।
युवा बाण फेंक
बचपन
उपकरण हमारी एक शक्ति है । वह कार्य करने में निमित्त बनती है, सहयोग देती है । आंखें देखती हैं । वे देखने में निमित्त बनती हैं। देखने की मूल शक्ति आंख नहीं है । वह तो एक माध्यम है। उसमें केवल प्रतिबिम्ब आता है | देखने की शक्ति उस नर्व में है, जिसे हम उपकरण कहते हैं । कान का आकार नहीं सुनता । उसमें जो उपकरण है, उसमें सुनने की शक्ति है । प्रत्येक प्रवृत्ति का उपकरण होता है । जब तक बच्चा पांच-दस वर्ष का होता है तब तक यह पता नहीं चलता कि यह भविष्य में महान् कवि होगा, दार्शनिक संत होगा, क्योंकि उसके उपकरण अभी अपर्याप्त हैं । जो शक्तियां कवि को महान् कवि, दार्शनिक या संत बनाती हैं, वे बच्चे में अभी अभिव्यक्त नहीं हैं । उपकरण अभी पूर्ण विकसित नहीं है । बच्चे में भी सारी शक्तियां विद्यमान हैं, पर जब तक उसके शारीरिक अवयव, मस्तिष्क
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