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________________ बचपन एक शिकायत लेकर अन्धकार इन्द्र के पास पहुंचा। उसने कहा'सूर्य सदा मेरा पीछा करता रहता है । मैं जहां जाता हूं, पीछे-पीछे आता है और मुझे कष्ट पहुंचाता है । आप न्याय करें और सूर्य को ऐसा करने से रोके ।' इन्द्र ने सूर्य को बुलाकर पूछा । सूर्य बोला-'कैसा अन्धकार ! मैंने उसे कभी देखा ही नहीं। मैं उसे पहचानता भी नहीं। फिर सताने की बात ही क्या ?' दोनों बातों में सचाई है । अन्धकार की शिकायत में भी सचाई है और सूर्य के कथन में भी सचाई है। सूर्य अंधकार का नाश करता है, यह भी सच है और उसने कभी अन्धकार को देखा भी नहीं, यह भी सच है। दोनों सचाइयों को सापेक्ष दृष्टि से देखना होगा। निरपेक्षदृष्टि से सचाई का पता नहीं चल सकता। ___ जीवन के विषय में भी हमारा दृष्टिकोण सापेक्ष होना चाहिए। जीवन में अन्धकार भी है, प्रकाश भी है। सूर्य भी उग रहा है और अंधकार भी है, दोनों सापेक्ष हैं। - जीवन का पहला अध्याय है-बचपन । अनेक लोग कहते हैं कि बचपन निश्छल, सरल और स्पष्ट होता है। उसमे कोई बुराई नहीं होती। यह भी एकांगी कथन है । बच्चा स्पष्ट और पवित्र है और वह सामाजिक संदर्भ में सब कुछ सीखता है, यह भी एकांगी बात है, पूर्ण सही नहीं है। बच्चा बहुत कुछ लेकर आता है । उसमें अच्छाइयां भी हैं और बुराइयां भी हैं । वह आनुवंशिकता के सूत्र से बंधा हुआ होता है। क्रोमोसोम और जीन-गुण सूत्र और संस्कार-सूत्र वह लेकर आता है । उसमें अनेक संस्कार हैं । इसमें भी आगे चलें तो उसमें कर्म के संस्कार विद्यमान हैं । उसके पास इन कर्म संस्कारों का असीम खजाना है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि एक बच्चा बिलकुल रिक्त है, स्पष्ट है, कोरी पाटी के समान है। यह सापेक्ष सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं है। निमित्त काम करते हैं, सामाजिक वातावरण काम करता है। सामाजिक वातावरण के संदर्भ में बच्चा एक आकार लेता है । यह भी एकांगी कथन है । कोरा सामाजिक वातावरण उसे प्रभावित नहीं कर पाता । उसमें जो है, जो संस्कार-बीज वह साथ में लेकर आया है, वह भी उसके व्यक्तित्व का घटक बनता है, उसे प्रभावित करता है। वे संस्कार-बीज प्रकट होते हैं। सामाजिक संदर्भ उसमें निमित्त बनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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