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________________ जीवन की पोथी १२९ जा सकता है । ध्यान की एकाग्रता से आभामण्डल पढ़ा जा सकता है, फिर रूप-रंग को नहीं देखा जाता । देखा यह जाता है कि व्यक्ति की ऊर्जा का वलय कैसा है ? विद्युत् का वलय कैसा है ? उसके रंगों के आधार पर यह ज्ञात हो जाता है कि वह कितना पवित्र है, कितना शक्तिशाली है । बाह्य आकार-प्रकार से शक्ति का अनुमापन नहीं होता। शक्ति का अनुमापन होता है भीतरी ऊर्जा से, विद्युत् से। जिसकी भीतरी ऊर्जा कमजोर है, उसका आभामण्डल कमजोर होगा। एक डॉक्टर और एक प्रेक्षाध्यान के अभ्यासी को स्थूल शरीर को जानना बहुत आवश्यक होता है । इस दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है । यह स्थल बात है। दोनों में अन्तर भी है। डॉक्टर केवल नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र का ही ज्ञान करता है । प्रेक्षाध्यानी को इनके साथ-साथ प्राणधारा का भी ज्ञान करना होता है। प्राणधारा को जाने बिना इस महाग्रन्थ को नहीं पढ़ा जा सकता । हम सोचते हैं, बोलते हैं, चलते-फिरते हैं, यह सारा प्राण-शक्ति का कार्य है । आत्मा न सोचती है, न बोलती है और न चलतीफिरती है । कम्प्यूटर या रोबोट-ये सारे कार्य करता है। उसमें विद्युत् . शक्ति काम करती है । उसी प्रकार मनुष्य की प्राणशक्ति विद्युत्-शक्ति है । उसी के द्वारा सारा कार्य होता है। _ 'जीवन पोथी के सौ पृष्ठ'- यह मेरा विवेच्य विषय है। सौ पृष्ठों की चर्चा कब कैसे हो पाएगी, यह नहीं कहा जा सकता। आज विषय-प्रवेश हुआ है । हम सबका यह उद्देश्य हो कि हम इस महापोथी को पढ़ने का अभ्यास करें। इस अभ्यास से जीवन जीने की कला आएगी। जीवन को कैसे जीया जाए, किस प्रकार आनन्द, शक्ति और ज्ञान के साथ जीया जा सकता है-यह मंत्र हाथ लगेगा, सूत्र हाथ लगेगा। मैं मंगल भावना करता हं कि यह मंत्र और सूत्र प्रत्येक अभ्यासी को हस्तगत हो और प्रत्येक व्यक्ति आनन्द और शक्ति का जीवन जी सके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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