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________________ १२८ जीवन की पोथी उसका मन कुतुहल से भर गया। वह तोते के पास गया, पूछा-शुकराज ! पहले एक तोता मिला था । वह लूटो-मारो की भाषा बोल रहा था और तुम सुस्वागतं की भाषा में बोल रहे हो। क्या रहस्य है ? शुकराज ने कहा---- राजन् ! हम दोनों सगे भाई हैं । वह चोरों के पास रहता है, उनकी बोली सुनता है, उनके आचरण और व्यवहार को देखता है, इसलिये वह लूटो, मारो की भाषा बोलता है। मैं ऋषियों के साथ रहता हूं, उनकी वाणी सुनता हूं, इसलिये मेरी भाषा वैसी बन गई । यह है वातावरण और पर्यावरण का चमत्कार। जब तक जीवन के ये दो पृष्ठ नहीं पढ़े जाते तब तक महाकाव्य की ठीक से व्याख्या नहीं की जा सकती। पहला पृष्ठ है शरीर । यह अत्यन्त जटिल और गहन है। इसको पढ़ पाना मुश्किल है। यह तीन भागों में बंटा हुआ है -सूक्ष्मतर, सूक्ष्म और स्थूल । मनोविज्ञान की भाषा में अचेतन, अवचेतन और चेतन । दूसरे शब्दों में अज्ञाततर, अज्ञात और विज्ञात । हमारे शरीर का एक भाग इतना सूक्ष्म है कि इसे पढ़ पाने की बात नहीं होती । पानी स्थूल है। हम देख सकते हैं, जान सकते हैं । जब पानी सूक्ष्म बन जाता है, भाप बन जाता है तब वह हमारी दृष्टि से परे हो जाता है । सूक्ष्मतर शरीर भाप जैसा है, वह वाष्पीय है। उसे देखा नहीं जा सकता । उसमें इतने प्रकम्पन होते हैं कि उन्हें जाना नहीं जा सकता । जब ध्यान के अभ्यास के द्वारा हमारी चेतना सधन बनती है तब धीमे-धीमे यह शक्ति पैदा होती है कि हम चेतन या अचेतन शरीर के सब प्रकम्पनों को पढ़ने में सक्षम होते हैं, लिपि को पढ़ सकते हैं और उसके साथ सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला स्थूल को पढ़ना शुरू करता है । सबसे स्थूल है हमारा आभामण्डल जो स्थूल शरीर के साथ काम करता है । जिसने आभामण्डल को पढ़ना सीख लिया, उसने बहुत सारे रहस्यों को जान लिया। आज के डॉक्टर रोग-निदान की नई पद्धति का विकास कर रहे हैं। वह है 'आभामण्डलीय निदान पद्धति ।' मद्रास के कुछ डॉक्टरों ने एक यन्त्र बनाया है जिसके द्वारा अंगूठे के आभामण्डल का फोटो लिया जाता है और उसके द्वारा रोगों का निदान किया जाता है। उनका दावा है कि अगूठे के आभामण्डल के फोटो के अध्ययन से तेरह रोगों का निदान किया जा सकता है। आभामण्डल के द्वारा भविष्य में होने वाले रोगों-दो-चार-छह महीनों में होने वाले रोगों का पता भी लग सकता है और मृत्यु का समय भी ज्ञात हो सकता है । आभामण्डल के द्वारा इन रहस्यों का पता लगाया जा सकता है और जीवन के महाग्रन्थ के कुछ भाग को पढ़ा जा सकता है। आभामंडल के द्वारा व्यक्ति के आचरण और व्यवहार को, स्वभाव और प्रकृति को जाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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