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________________ १२६ जीवन की पोथी है जब स्थिरता होती है। कायोत्सर्ग की मुद्रा में गए बिना, शिथिलीकरण किए बिना कोई भी व्यक्ति जीवन के इस महाग्रन्थ को नहीं पढ़ सकता । मानसिक चंचलता को मिटाए बिना, अन्तर्दष्टि को जगाए बिना, कोई भी इस महाकाव्य को नहीं पढ़ सकता। प्रवृत्ति का जितना विसर्जन होगा, स्थिरता जितनी सधेगी, उतनी ही पढ़ने की क्षमता बढ़ेगी। ___ जो व्यक्ति एकाग्रता, अन्तर्दर्शन और शिथिलीकरण ---इन नियमों का पालन करता है, बह इस महाग्रंथ को पढ़ने में समर्थ होता है । यह महाग्रन्थ अनन्त रहस्यों से भरा पड़ा है, पर उसको न पढ़ सकने के कारण सारे रहस्य छुपे रह जाते हैं । जिन लोगों ने इस महाग्रन्थ को पढ़ा, उन्होंने कहा, हमारे भीतर अनन्त ज्ञान है, अनन्त दर्शन है, अनन्त आनन्द है और अनन्त शक्ति है। जो लोग इस महाग्रन्थ को नहीं पढ़ते, वे इस तथ्य को भी स्वीकार नहीं कर पाते कि हमारे भीतर अनन्त आनन्द है । पर पढ़ने वाले के समक्ष ये सारी सचाइयां प्रकट हुए बिना नहीं रहतीं । आज के मनुष्य के लिए आनन्द है पदार्थ-सापेक्ष । गर्मी का मौसम है । पंखे की हवा मिलती है तो आनन्द की अनुभूति होती है । भूख लगने पर सुस्वादु भोजन मिलता है, प्यास लगने पर ठंडा पानी मिलता है तो आदमी आनन्द का अनुभव करता है। किंतु जो व्यक्ति इस महापोथी को पढ़ना जानता है वह इन पदार्थों के बिना भी आनन्द की अनुभूति कर लेता है। पदार्थ-निरपेक्ष आनन्द भीतर में खोजा जा सकता है। यही है उस महाग्रन्थ को पढ़ना । भगवान् महावीर छह-छह महीनों तक भूखे-प्यासे रहे । पर उनका आनन्द सदा बढ़ता ही गया। इसका मुख्य कारण था कि पदार्थ-सापेक्ष आनन्द से वे निरपेक्ष थे और वे इस महाग्रन्थ को पढ़ना सीख चुके थे। इसलिए आनन्द का स्रोत इतना अजस्रप्रवाही बन गया कि उनका आनन्द अबाधित और अटूट बना रहा । उनके आनन्द का स्रोत कभी सूखा नहीं। - हमारे भीतर अनेक रहस्य हैं, किन्तु हम उस महाग्रन्थ को पढ़ना नहीं जानते, इसलिए न तो आनन्द को खोज पाते हैं, न शक्ति को खोज पाते हैं और न ज्ञान-दर्शन को खोज पाते हैं । हम इतनी बड़ी संपदा के स्वामी होने पर भी दरिद्रता का अनुभव करते हैं । इसका मूल कारण है अज्ञान । जब तक व्यक्ति रहस्य को नहीं जानता वह पारस और पत्थर में भेद नहीं कर सकता। आदमी की अनभिज्ञता इतनी है कि उसकी कोई सीमा नहीं है । बाहर ही बाहर जीने वाला, स्थूलदृष्टि में जीने वाला, सदा सूक्ष्म जगत् से अनजान रहा है । यही सारी समस्याओं और दुःखों का कारण है। . प्रेक्षाध्यान का प्रयोग उस सूक्ष्म जगत् से परिचित होने का उपाय है, उस सूक्ष्म लिपि को पढ़ने का उपाय है । हम कम से कम पढ़ना तो सीख जाएं, फिर पढ़ें या न पढ़ें, यह दूसरी बात है । इतना होने मात्र से भी जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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