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जीवन की पोथी
जीवन एक बहुत बड़ी पोथी है। उसके दस अध्याय हैं। एक-एक अध्याय के अरबों-अरबों पृष्ठ और एक-एक पृष्ठ में अरबों-अरबों अक्षर । ये अक्षर इतनी सूक्ष्म-लिपि में लिखे गए हैं कि ये चरम-चक्षु से नहीं पढ़े जा सकते । हमारे मुनि ने सूक्ष्म-लिपि में एक पत्र लिखा । उसमें लगभग अस्सी हजार अक्षर हैं। यह अत्यन्त सूक्ष्म-लिपि मानी जाती है। किंतु जीवन पोथी में जो लिपि है, वह इतनी सूक्ष्म है कि एक पत्र में करोड़ों-करोड़ों नहीं, अरबों-अरबों अक्षर लिखे गए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि हमने स्वयं लिखा है । वे सारे पृष्ठ हमने भरे हैं। पर खेद है, हम अपना लिखा भी नहीं पढ़ पाते । यह सबसे बड़ा आचर्य है । हम प्रतिदिन लिखते चले जा रहे हैं. पर पढ़ नहीं पा रहे हैं। हमने लिखा ही नहीं है, आज भी लिख रहे हैं । प्रतिदिन लिखते हैं। प्रतिदिन ही नहीं, प्रति घंटा ही नहीं, प्रति मिनट, प्रति मिनट ही नहीं, प्रति सेकण्ड लिखते जा रहे हैं । एक सेकण्ड में कितना कुछ लिख लेते हैं, यह भी आश्चर्यजनक है।
हमारे भीतर दो प्रकार के लिपिक काम कर रहे हैं । एक तो लिखता ही चला जा रहा है, कभी थकता ही नहीं। उसकी गति कभी बन्द नहीं होती। दूसरा लिपिक कभी लिखता है, कभी विश्राम लेता है। जो निरन्तर लिखता जा रहा है, वह एक सेकण्ड में हजारों-हजारों अक्षरों का विन्यास कर लेता है और जो विराम के साथ लिखता है, वह एक सेकण्ड में सैकड़ों अक्षरों का विन्यास कर लिखता है, वह एक सेकण्ड में सैकड़ों अक्षरों का विन्यास कर लेता है।
___इतना बड़ा महापोथा है हमारा जीवन । पर हम उसे पढ़ते नहीं। पढ़ने के लिए स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में जाते हैं। पढ़ने के लिए विभिन्न प्रकार की पुस्तकें खरीदते हैं और सभी विद्याओं की पुस्तकें पढ़ने का प्रयत्न करते हैं । इससे बड़ा क्या आश्चर्य होगा कि सबको पढ़ने वाला व्यक्ति अपने जीवन की पोथी कभी नहीं पढ़ता, कभी इस महापोथी के पन्ने नहीं उलटता । यह सही है कि इस महापोथी को पढ़ने का ढंग निराला है। दूसरी सारी पुस्तकें पढ़ी जाती हैं, जब आंखें खली होती हैं, जब चंचलता होती है। किंतु जीवन की पोथी तब नहीं पढ़ी जाती जब आंख खुली होती है, चंचलता होती है। जीवन की महापोथी तब पढ़ी जाती है जब आंख बन्द होती है यह तब पढ़ी जाती है जब चंचलता नहीं होती है। यह तब पढ़ी जात
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