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प्रश्न है नियोजन का
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उसमें क्रूरता नहीं रहेगी । क्रूरता नहीं रहेगी तो स्वार्थ नहीं रहेगा स्वार्थ, क्रूरता और लोभ - इन तीनों का एक गठबंधन है । लोभ होगा, स्वार्थ होगा और क्रूरता होगी। इनका परिमार्जन होना चाहिए। ध्यान करने का सबसे बड़ा जो फल है, वह यह है कि व्यक्ति में संवेदनशीलता जागनी चाहिए । अगर दूसरों के प्रति करुणा नहीं जागी, दूसरों के दुःख को अपना दुःख नहीं माना तो समझना चाहिए कि ध्यान भी एक प्रकार का नशा बन गया । ध्यान नशा तो है, इसमें भी एक मादकता है ।
वृत्ति परिष्कार की बात को भुला दिया जाता है, तब ध्यान नशा बन जाता है। कोरी शांति की बात समझ में नहीं आती। कोरी शांति तो नींद में भी आएगी। गरमी में तपे तपाए हैं, और कहीं वातानुकूलित मकान में जाकर बैठे या पेड़ की छांह में जाकर बैठे तभी शांति होगी । शांति का कोई अर्थ नहीं ध्यान का अर्थ कोरी शांति नहीं है । ध्यान का अर्थ हैभावों का परिष्कार । भावनाएं बदलें और वृत्तियां बदलें । वृत्तियों में परिवर्तन आना चाहिए। घर में गए, एक घंटा बैठकर ध्यान किया। अब घंटा के बाद उठे और उठते ही लड़ाइयां शुरू कर दी तो शांति किसके काम आएगी
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प्रेक्षाध्यान का प्रयोजन है - भावों को बदलना, वृत्तियों को बदलना, आदतों को बदलना, स्वभाव को बदलना और यह परिवर्तन ही वास्तव में ध्यान का मूल्य बढ़ाता है |
सामाजिक जीवन का पहला यूनिट है - परिवार। जिसका पारिवारिक जीवन ही अच्छा नहीं होता, वह समाज के लिए भी बहुत अच्छा नहीं बनता । वह भी सामाजिक जीवन है हमारा । दस आदमी एक साथ रहते हैं । अगर व्यक्ति का पारिवारिक जीवन अच्छा नहीं है तो वह समाज के लिए भी बहुत भला नहीं करेगा। यह प्रयोग शुरू होना चाहिए पारिवारिक जीवन से । जिन लोगों ने ध्यान का प्रयोग शुरू किया है, उन लोगों का पारिवारिक जीवन बदल जाना चाहिए। उसमें सबसे बड़ी बात है असहिष्णुता की वृत्ति को बदलना । आज की बहुत बड़ी समस्या है, दूसरे को सहन न करना । भला कोई कह दे किसी को ! स्वतंत्रता का युग है । पिता अपने पुत्र को कोई बात कह दे तो बेटा सोचता है कि कौन कहने वाले होते हैं । तत्कल गुस्से में आ जाता है, सहन नहीं करता । कोई किसी को सहन नहीं करता । यह असहिष्णुता की बीमारी व्यापक बीमारी है कि जिसका कोई इलाज ही नहीं हो रहा है। जिस समाज में अहंकार ज्यादा होता है वह समाज स्वस्थ नहीं हो सकता । प्रेक्षाध्यान के द्वारा एक बात सीखने की है । वह है विनम्रता, अहंकार का वर्जन करना, अहंकार को मिटाना । अगर अहंकार मिटेगा तो असहिष्णुता की बीमारी अपने आप मिट जाएगी ।
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