________________
१२२
जीवन की पोथी अहंकार नहीं मिटा तो आप कभी सहिष्णु बन नहीं सकते। सारी चोट होती है अहंकार पर। छोटा बच्चा भी सोचता है कि मुझे कौन कहने वाला होता है पिता ! कौन होती है मां ! इतना अहंकार !
यह मान लिया गया कि पर्सनल लाइफ है, उसमें किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है । वैयक्तिक जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता । इस अवसर पर इतनी असहिष्णुता बढ़ गई कि बेटा बाप को मारने की बात कह सकता है । यही संस्कार भारतीय जीवन में आता जा रहा है । विचार संक्रामक होते जा रहे हैं। यदि सामाजिक स्वास्थ्य जरूरी है तो हमें इस बात पर विचार करना होगा कि अहंकार कम हो । प्रेक्षाध्यान का प्रयोग अहंकार को कम करने का प्रयोग है क्योंकि अध्यात्म में अहंकार करने का अवसर कम मिलता है। बाहरी वातावरण में अहंकार को मौका मिलता है, क्योंकि कोई छोटा है और कोई बड़ा है । पर जब अध्यात्म में आ गए तो फिर कोई छोटा-बड़ा है ही नहीं। इस स्थिति में अहंकार को पलने का मौका नहीं मिलता।
हमारे जीवन के ये दोनों पक्ष-वैयक्तिक जीवन का पक्ष और सामाजिक जीवन का पक्ष बांटा तो जाता है, पर काटा नहीं जाता। अंगुलियां पांच हैं। उन्हें बांटा तो जा सकता है, किन्तु काटा नहीं जा सकता । एक अंगुली को अलग कर दें तो क्या होगा; यह एक उदाहरण है। पांचों समाज हैं और पांचों अलग हैं । ठीक यही सम्बन्ध व्यक्ति समाज के बीच में है । लाख व्यक्ति हो सकते हैं, किन्तु एक हाथ से जुड़े हुए हैं। इन्हें काटा नहीं जा सकता। चाहे समाज का स्वास्थ्य हो, चाहे व्यक्ति का स्वास्थ्य हो, सबका मूल कारण है भावात्मक स्वास्थ्य। यह प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया भावात्मक स्वास्थ्य की प्रक्रिया है। जिन्होंने अभ्यास किया है, उनकी दृष्टि बहुत साफ रहनी चाहिए। उन्होंने एक ऐसे अनुष्ठान का प्रयोग किया है जिससे भावनाएं परिष्कृत होती हैं । यह दृष्टि नहीं रहेगी तो प्रेक्षाध्यान का जीवन में और अधिक विकास होगा। फिर परिवार को भी पता चलेगा, समाज को भी पता चलेगा। आपका भी कल्याण होगा, परिवार का भी कल्याण होगा और पूरे समाज का भी कल्याण होगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org