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जीवन की पोथी
और हमने आरोपण कर दिया धर्म पर । कहीं का भार कहीं पर लाद दिया । भार किसी पर लादना था और लाद दिया किसी पर। कभी-कभी ऐसा होता है । भ्रमवश आदमी ऐसा विपर्यय कर देता है, करना होता है कुछ और कर डालता है कुछ । यदि हम धर्म के नाम पर ऐसा आरोपण करेंगे तो धर्म की छवि धूंधली होगी और समाधान भी नहीं होगा । हम इस बात को समझें कि यह सब उस सम्प्रदाय के कारण हो रहा है जिस सम्प्रदाय ने अपने अनुयायियों को अध्यात्म में जाना नहीं सिखाया, जिस सम्प्रदाय ने अपने अनुयायियों को भीतर में झांकना नहीं सिखाया, जिस सम्प्रदाय ने अपने अनुयायियों को प्रेक्षा करना और आत्मालोचन करना नहीं सिखाया । वह सम्प्रदाय उन अनुयायियों का बहुत भला नहीं कर सकता । उनका व्यक्तित्व अखंड नहीं बना सकता । वह अकल्याणकारी बन जाता है ।
दिया गया । बहुत
आज जो अनैतिकता की समस्या है वह खंडित व्यक्तित्व के कारण है, केवल संप्रदाय के कारण है । संप्रदाय ने कर्मकाण्ड को पकड़ा है । अनुयायियों ने इतने में संतोष मान लिया कि उपासना करो, जप करो और क्रियाकांड करो ! सब कुछ करो, किन्तु नैतिक बनना अनिवार्य है, यह बात नहीं सिखाई । इसीलिए आज जितना धर्मं चलता है उतनी ही अनैतिकता चल रही है । यदि धर्म का, सम्प्रदाय का यह पहला पाठ होता कि पहले तुम्हें नैतिक बनना है और बाद में उपासना और पूजा-पाठ करना है, तो धर्म की स्थिति दूसरी होती । गौण बात पकड़ा दी गई और बात को छुड़ा बड़ी समस्या है । मैं जो नैतिकता की चर्चा कर रहा हूं, वह इस बंधी बंधाई नैतिकता की नहीं कर रहा हूं। आज तो कानूनी भाषा में भी नैतिकता उलझ गई । कानून के इतने दांव-पेच और इतनी जटिलताएं आ गई कि नैतिकता को समझना भी मुश्किल हो गया । मैं तो उस नैतिकता की चर्चा कर रहा हूं, जहां व्यक्ति की क्रूरता मिट जाए और करुणा जाग जाए। इसका नाम है नैतिकता । दूसरे व्यक्ति के साथ क्रूर व्यवहार न करे, दूसरे को धोखा न दे, अपने चित्त की निर्मलता रखे, यह है नैतिकता । अगर इतना हो जाए तो आज हिन्दुस्तान की स्थिति बदल जाए। कानूनी बात को एक बार छोड़कर आप सोचें कि आप अपने लोभ के कारण या स्वार्थ के कारण दूसरे व्यक्ति के साथ क्रूर व्यवहार तो नहीं कर रहे हैं ? दूसरे के साथ अन्याय तो नहीं कर रहे हैं ? दूसरे को धोखा तो नहीं दे रहे हैं ? तीन प्रश्न आप अपने आप पूछ लें तो आप नैतिक बन जाएंगे। कानून की आड़ हो सकती है । अधिकांश बुराइयां व्यक्ति अपने लोभ, स्वार्थ और क्रूरता के कारण करता है। जो लोभी है वह क्रूर न हो - यह कभी हो नहीं सकता । जो लोभी होगा उसे निश्चित क्रूर बनना पड़ेगा । क्रूरता के बिना लोभ का संवर्धन नहीं हो सकता । यह सारा क्रूरता के कारण ही हो रहा है। चाहे सत्ता का लोभ हो, चाहे
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