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जीवन की पोथी
दो घंटा और चार घंटा रोटी छोड़ देते हैं, पर झांकना नहीं छोड़ते ।
एक युवक नया-नया आया था शिविर में । अभ्यास शुरू किया था। उसकी हमेशा शिकायत रहती थी कि उससे आधा घंटा से ज्यादा एक स्थान पर बैठा ही नहीं जाता। बड़ी चपलता रहती। एक दिन ऐसा योग मिला, उसका ध्यान दर्शनकेन्द्र पर अटक गया। यहां से उसे इस प्रकार के सुखद कंपन पकड़ में आ गये कि एक घंटा और बीत गया, दो घंटा प्रतिमा की भांति बैठा रहा। फिर मेरे पास कुछ आदमी आकर बोले, न जाने क्या हो गया है, वह नहीं उठ रहा है । घर वालों को भी चिंता हो गई। बहुत जागने पर तो चिंता नहीं होती है पर ध्यान की गहराई में जाने पर चिंता हो जाती है । घबरा गए । मैं वहां गया और जाकर उसे कुछ सुनाया। उसके दर्शन-केन्द्र का स्पर्श किया और वह खड़ा हो गया। उसने कहा कि मुझे अभी क्यों उठा दिया। वह उठना नहीं चाहता था। हमने बताया कि दो घंटा बैठे हो गए। उसने कहा कि दो और चार क्या ? इतना आनन्द आ रहा था कि इसे तोड़ ही नहीं पा रहा था। सुख में इतना उलझ गया था कि उसे तोड़ नहीं पा रहा था। प्रकम्पनों का ऐसा तांता लग जाता है कि आदमी उसे तोड़ नहीं पाता।
___आदमी लोभ को छोड़ नहीं पाता। तो ठीक यही बात है कि जब ध्यान के सुखद प्रकम्पन जागृत होते हैं, उन प्रकम्पनों में आदमी उलझ जाता है, तब छोड़ने की स्थिति नहीं बनती। निरन्तर वह चलता ही रहता है। यह अनुभव तभी हो सकता है जब व्यक्ति ने अपने भीतर झांका। तब उसे पता चला कि भीतर में भी सुख है नहीं तो हम मान ही नहीं सकते। जो अध्यात्म के आचार्यों ने कहा, वह बहके में बात कह दी। हमारा विश्वास ही नहीं हो सकता।
धर्म और अध्यात्म के प्रति सही आस्था उसी व्यक्ति में हो सकती है जिसने अपनी चेतना के भीतर की गहराइयों में जाकर उसका अनुभव किया है, उसे देखा है, समझा है और उसे ज्ञात हो गया है कि भीतर में भी कितना सुख है।
प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति जब एकाग्रता के क्षणों में जाता है, मन की चंचलता कम होती है, एकाग्रता बढ़ती है । उससे जो शांति मिलती है, आनन्द मिलता है उसे लगता है कि यह तो बड़ा आनन्द है । सुख क्या है ? खाने से सुख नहीं मिलता, पीने से सुख नहीं मिलता । सुख है हमारे विद्युतीय प्रकम्पन । हमारे भीतर के प्रकम्पन के साथ जब मन का योग होता है तो सुख का अनुभव होता है। रोटी खाओ और मन कहीं दूसरी जगह भटक रहा है तो सुख नहीं होगा । बढ़िया भोजन करने बैठा और उसे कह दिया गया कि आज एक समाचार मिला है कि १० लाख का घाटा हो गया। अब बढ़िया भोजन खाएगा तो क्या सुख मिलेगा?
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