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________________ प्रश्न है अखंड व्यक्तित्व का १११ जाती है। जिस व्यक्ति ने अध्यात्म का अनुभव नहीं किया, उस व्यक्ति का व्यक्तित्व अखंड नहीं हो सकता। धर्म के सारे लोग कहते हैं कि इन्द्रियों का सुख-दुख है । खाना-पीना, मौज-मजा करना, ऐशो-आराम करना-ये सारे खराब हैं, दुःख हैं। क्या यह बात आपके समझ में आएगी ? कौन मानेगा ? ऐसा लगेगा कि कहने वालों ने सही नहीं कहा, गलत कहा । यह बात जो आदमी इन्द्रिय जगत् में जी रहा है उसे बिलकुल झूठी लगेगी । वह तो कहेगा कि बिलकुल आनन्द भोग रहा हूं, आनन्द आ रहा है । भूख लगी और रोटी खाई, तृप्त हो गया। प्यास लगी, पानी पिया और तृप्त हो गया । नींद आ रही है, मजे से नींद ली। सारा सुख ही सुख लगता है । वह इस बात को कैसे सच मानेगा । किंतु जिस व्यक्ति ने अपने भीतर में प्रवेश किया है और भीतर में झांका है, अपने चैतन्य केन्द्रों को सक्रिय बनाया है, आनन्दकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र को सक्रिय बनाया है, वह व्यक्ति समझ सकता है कि सुख क्या है ? सुख बाहर है या भीतर है, उस सचाई को वह पकड़ सकता है । जब दर्शनकेन्द्र के प्रकम्पन चालू होते हैं और जब आनन्दकेन्द्र के प्रकम्पन चालू होते हैं, उस समय जिस आनन्द की अनुभूति होती है, वह सोचता है कि ऐसा सुख तो खाने में भी नहीं है और पीने में भी नहीं है, किसी पदार्थ के भोग में नहीं है। यह बहुत बढ़िया सुख है। अब उस भूमिका पर पहुंचा हुआ आदमी समझ सकता है कि अध्यात्म के आचार्यों ने जो बाहर के सुख को सुख नहीं कहा, वह सापेक्ष दृष्टि से नहीं कहा । उनकी तुलना में, आंतरिक अनुभव की तुलना में, वे बहुत फीके हैं, कमजोर हैं। किन्तु जिस व्यक्ति ने भीतर कभी झांका ही नहीं, उसका व्यक्तित्व कैसे अखंड बन सकता है ? वह तो उसे समझ ही नहीं सकता । बहुत बार ऐसा होता है कि सचाई को समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है। एक ग्रामीण आदमी एक बार शहर में चला गया। साथ में कुछ दोस्त थे । सबने कहा कि चलो सिनेमा देखें। सिनेमा घर में चला गया । सिनेमा चाल होने वाला था । बत्तियां बुझा दी गईं। ग्रामीण बोला, देखो कितना मूर्ख है अंधेरा कर दिया और इस अंधेरे में हमें क्या खाक दिखाएंगे ! हम देखने आए हैं कि अंधेरे में बैठने आए हैं ? उसे क्या पता कि सिनेमा कैसे दिखाया जाता है। उसे अनुभव ही नहीं था, उसे पता ही नहीं था ___आपसे कहा जाए कि एक घंटा रोटी मत खाओ, जरा भीतर जाओ, भीतर में झांको। आप सोचेंगे कि रोटी खाने से तो पेट की भूख मिटेगी और भला ध्यान में बैठे रहेंगे तो क्या मिलने वाला है। जिन लोगों ने भीतर में झांका है और देखा है और भीतर जाने का अभ्यास किया है वे एक घंटा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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