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प्रश्न है आदत को बदलने का
पुरानी आदत को बदलना मुश्किल है और नई आदत को डालना मुश्किल है। दोनों कठिन काम हैं । आदत को बदलने में बहुत शक्ति चाहिए। सामान्य प्रयत्न से न तो कोई आदत का निर्माण किया जा सकता है और न पुरानी आदत को बदला जा सकता है। उसके लिए एक प्रक्रिया की जरूरत है । उस प्रक्रिया का पहला अंग है-आलोचना-अपने आपको देखना। जो अपनी आदत को देखता ही नहीं, उसके लिए बदलने की बात ही प्राप्त नहीं होती। जिसने अपनी आदत को देखना सीख लिया, उसने बदलने के लिए पहला चरण उठा लिया । आलोचना के द्वारा साक्षात्कार होता है। व्यक्ति छोटी, बड़ी, सूक्ष्म और स्थूल-सभी प्रवृत्तियों को देखता है। जो दूसरे का जजमेंट होता है वह ८० प्रतिशत गलत होता है, २० प्रतिशत सही हो सकता है। हर व्यक्ति जीता है अपने भाव जगत में और दूसरा पकड़ता है केवल उसका व्यवहार । भाव जगत् में जीने वाला व्यक्ति जैसा व्यवहार करता है वैसा दूसरा कैसे कर सकता है ? व्यवहार के आधार पर सही निर्णय नहीं किया जा सकता। एक व्यवहार दो हेतुओं से भी उत्पन्न हो सकता है। एक आचरण के पीछे दो कारण हो सकते हैं। एक व्यवहार के पीछे मारने का कारण भी हो सकता है और जिलाने का कारण भी हो सकता है। जिलाना चाहता है पर व्यवहार वह मारने वाला कर रहा है, मारना चाहता है, पर व्यवहार वह जिलाने वाला कर रहा है। व्यवहार दोनों के समान, किन्तु हेतु दोनों के बिलकुल भिन्न हैं।
डाक्टर ऑपरेशन करता है, चीरफाड़ करता है, चाकू चलाता है। यह व्यवहार कोई अच्छा नहीं लगता, किन्तु इसके जो प्रेरक तत्त्व हैं, वे बहुत अच्छे हैं। डाक्टर उसे स्वस्थ एवं दीर्घायु बनाना चाहता है। वही चाक दूसरा आदमी चलाता है, छुरा घोंपता है और पेट को फाड़ देता है। व्यक्ति को मार डालता है। डाक्टर ने भी छुरा चलाया और उस व्यक्ति ने भी छुरा चलाया। एक ही क्रिया पर उसके दो अर्थ हो जाते हैं। एक ने छुरा चलाया जीवन के लिए और दूसरे ने छुरा चलाया जीवन-हरण के लिए।
व्यवहार के आधार पर किसी भी व्यक्ति की व्याख्या नहीं की जा सकती। हमारी व्याख्या का मूल सूत्र बनता है भाव जगत् । कहां जी रहा है, किस भाव में जी रहा है ? अपूर्णदृष्टि वाला आदमी व्यवहार में जीता है
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