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प्रश्न है आदत को बदलने का
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बोला कि आपने प्रवचन में कहा कि एक सीमा होनी चाहिए तो फिर विकास कैसे हो सकेगा? आज की विकास की दौड़ में पीछे रह जाएंगे । मैं तो यह सोचता हूं कि अगर सोच-समझकर, जान-बूझकर ईमानदारी और सद्चरित्र के आधार पर कोई दौड़ में पीछे रह जाएगा, वह दुनिया का सबसे बड़ा सौभाग्यशाली आदमी होगा। ऐसे हैं कहां सौभाग्यशाली आदमी ? इतनी त्याग की क्षमता है कहां ? इतना चरित्र है कहां? जो इस अन्धी दौड़ के पीछे रह सकें । सब दौड़े जा रहे हैं। इतनी अन्धी दौड़ कि न जाने कहां जाकर टिकाव होगा, पता नहीं है किसी को भी। कहीं भी ब्रेक है ही नहीं।
यह जीवन का सबसे बड़ा विघ्न है कि आदमी सीमा करना नहीं जानता। जहां ससीम होना चाहिए, वहां असीम होने की बात सोच रहा है। जहां असीम होना चाहिए, वहां सीमा की बात सोच लेता है। अपने आंतरिक विकास की बात में आदमी असीम हो सकता है। वहां तो बिलकुल सीमाएं कर दी हैं और भौतिक विकास में, पदार्थ के विकास में एक सीमा होनी चाहिए, वहां असीम की दौड़ दौड़ रहा है । इतना मिथ्या दृष्टिकोण हो गया । जब दृष्टिकोण मिथ्या होता है तो असीम आकांक्षाएं जागती हैं । जब दृष्टिकोण मिथ्या होता है तो जीवन में मायाचार पलता है । शांतिपूर्ण जीवन और तनावमुक्त जीवन के तीन विघ्न हैं-मिथ्या दृष्टिकोण, असीम आकांक्षा और मायाचार । इन तीन कांटों को वह आदमी निकाल सकता है, जो स्वयं की आलोचना करते हैं और अपने आपको देखना जानता है।
प्रेक्षाध्यान करने वाले इस बात का अनुभव करें कि हम एक बहुत बड़े काम के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। उनका प्रस्थान कोई छोटा नहीं है । वे जीवन में आने वाले इन तीन विघ्नों को, शल्यों और घावों को रोकने के लिए, कांटों को निकालने के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। और ये कांटे केवल वही निकाल सकता है जो अपनी प्रेक्षा करता है, अपनी आलोचना करता है, अपनी ओर देखता है। कितना बड़ा काम है ! काम छोटा नहीं, कठिन है । एक मिनट के लिए भी अगर आदमी अचंचल बन गया तो समझो कि इतनी बड़ी सेना के सामने अकेला आदमी सीना तान कर खड़ा हो गया और फिर उस सेना को भी सोचना पड़ा कि आगे रास्ता सीधा नहीं है। खतरे से खाली नहीं है। कितनी बड़ी बात है, एक क्षण के लिए भी कायोत्सर्ग कर देना, काया को स्थिर रख लेना !
आत्मालोचन का और आलोचन का आप फिर मूल्यांकन करें वि आलोचना कितनी महत्त्व की बात है। आलोचना करने वाला अपने जीवन में आने वाले ये जो विघ्न हैं, बाधा डालने वाले हैं उन्हें टालता रहता है औ रास्ता सीधा बना लेता है। जिस व्यक्ति ने आलोचना करना और अप आपको देखना सीख लिया, उसने अपनी अलग पहचान बना ली।
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