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प्रश्न है आलोचना का
दुनिया में सबसे कठिन काम है आलोचना करना, पर आज इसे सरल बना डाला ! आज का आदमी अनुभव करता है कि सबसे सरल काम है आलोचना करना । इसे चाहे जब, चाहे किसी की, चाहे ज्यों करो, कोई श्रम नहीं करना पड़ता। यह एक बात है। इस संदर्भ में आलोचना का अर्थ है टीका-टिप्पणी करना।
दुनिया में सबसे जटिल काम है आलोचना करना। वह हर एक व्यक्ति कर नहीं सकता। इस आलोचना का अर्थ है-अपने आपको देखना, प्रेक्षा करना। __ आलोचना सरल भी है और जटिल भी। यह सापेक्ष है।
आदमी दूसरे को बहुत देखता है, स्वयं को नहीं देखता । अपने आपको नहीं देखता।
गुरु के पास एक शिष्य आकर बोला-'गुरुदेव ! आप चक्षुदाता हैं। मुझे चक्षु दें।' गुरु बोला-'तुम्हारे पास दो आंखें हैं, फिर क्या चाहिए ?' वह बोला-'दो तो हैं, पर मुझे तीसरी आंख दें, जिसके द्वारा मैं अन्धकार को न पालूं। मुझे जो दो आंखें प्राप्त हैं, उनके द्वारा मैं प्रकाश पाता हूं और साथ ही साथ अंधकार को पालता हूं।'
कोन व्यक्ति होगा जो प्रकाश के साथ अन्धकार को नहीं पालता? केवल दीए के तले ही अंधेरा नहीं होता, हर प्रकाश के तले अन्धेरा होता है। हमारी दोनों आंखों के नीचे अन्धेरा है। ये दोनों आंखें अंधेरे को पालती हैं, पोसती हैं । इधर देखा, उधर देखा और देखे को अनदेखा कर डाला, यह अन्धेरे को पालना है । अनेक लोग सचाई को जानते हुए भी उस पर आवरण डाल देते हैं और असत्य को सामने ला रखते हैं। यह भी अन्धेरे का पालना
तीन अन्धकार हैं-माया, निदान और मिथ्या दृष्टिकोण। शिष्य ने कहा ...प्रभो ! मुझे वह दृष्टि चाहिए जिसमें ये तीनों न हों। छिपाव न हो, कोरा प्रकाश ही प्रकाश हो, लोहावरण न हो । आज कितना छिपाव है, कितना मायाचार है ! ये अंतरिक्षयान गुप्तचरी करने के लिए हैं। ये गुप्तचरी की गुप्तचरी करते हैं। एक राष्ट्र अपने आयुधों को छिपाना चाहता है तो दूसरा राष्ट अंतरिक्ष यान की गुप्तचरी से उसे जान लेता है । एक छिपाता है, दूसरा जान लेता है। यह मायाचार इतना बढ़ गया है कि कहीं सचाई नहीं है,
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