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जीवन की पोथी
कि स्वयं आचार्यश्री इतना श्रम करते हैं कि दूसरों को अपना श्रम आचार्य के श्रम की तुलना में नगण्य सा लगता है। एक बार राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली ने आचार्यश्री से कहा- आचार्यश्री ! एक प्रार्थना करता हूं कि जैन विश्व भारती का विकास हो, अपेक्षित है, पर आप कहीं बैठ मत जाना। आप यदि बैठ गए तो दूसरों को खड़ा नहीं रख सकेंगे, अर्थात् फिर दूसरों को चलाया नहीं जा सकेगा।
___ आचरण से जो पाठ पढ़ाया जा सकता है, वह शब्दों से नहीं पढ़ाया जा सकता। इस रहस्य को उत्तराध्ययन सूत्र में जो अभिव्यक्ति दी गई है, यह बात समझ में आ जाए तो 'प्रश्न है सीख देने वालों का' यह स्वयं समझ मे आ जाएगा।
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