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वासना-विजय
आज का चिन्त्य विषय है-वासना-विजय। उसके दो पहल हैं : १. वासना क्या है ? २. उस पर विजय कैसे पा सकते हैं ? एक व्यक्ति दरवाजे से प्रवेश करता है। उसके चरण धूलि पर टिकते हैं। व्यक्ति चला जाता है। उसके चले जाने पर भी चरण-चिह्न रह जाते हैं। वह वासना है। चित्रपट के फीते पर अनेक आकृतियां अंकित होती हैं। वह अंकन वासना है।
यह अमिट सिद्धान्त है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमारा मन मार्ग-धूलि है; जो विचार पथिक आते हैं, वे अपने चरण-चिह्न छोड़ जाते हैं। हमारा मन फीता है; जो विचार आते हैं, वे उस पर अपनी आकृतियां अंकित कर जाते हैं। यही वासना है। जो अनभूत विषय की विस्मति है वह वासना है। उसे भावना और संस्कार भी कहते हैं । सामान्यतः वासना का अर्थ बुरा ही समझा जाता है किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। वह अच्छी भी होती है और बुरी भी । अच्छे विचारों को वासना अच्छी और बुरे विचारों की वासना बुरी होती है।
हम वासना-मुक्त होना चाहते हैं। हमारा अन्तिम लक्ष्य वासना-विजय नहीं, वासना-मुक्ति है। प्रथम भूमिका में वासना-विजय करना प्राप्त है। उसका एक निश्चित कम है। पहले हम बुरी वासनाओं को जीतें, फिर उनको जीतें, जो अच्छी हैं। हम साधु हैं। साधुत्व का अर्थ है-वासना पर विजय पाना। वासना-विजय की साधना का पहला चरण संकल्प है। संकल्प जब दृढ़ होता है तव दबी हुई वासनाएं एक साथ उभरती हैं। संकल्प से पूर्व वे उतनी नहीं उभरती जितनी संकल्प के समय उभरती हैं। कहा जाता है कि श्वेत आक के नीचे धन का निधान होता है। कोई उसे निकालने का यत्न करता है तो सांप फफकारने लग जाता है। निकालने
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