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ब्रह्मचर्य का शरीर शास्त्रीय-अध्ययन । १०६
या नौ बार दोहराएँ।
(ख) पीठ के बल चित्त लेट जाएं। सिर, गर्दन और छाती को सीध में रखें । शरीर को बिलकुल शिथिल करें। मुंह को बन्द कर पूरक करें। पूरक करते समय यह संकल्प करें कि काम-शक्ति का प्रवाह जननेन्द्रिय से मुड़ मस्तिष्क की ओर जा रहा है। मानसिक चक्ष से यह देखें कि वीर्य रक्त के साथ ऊपर जा रहा है। काम-वाहिनी (जननेन्द्रिय के आस-पास की) नाड़ियां हल्की हो रही हैं और मस्तिष्क की नाड़ियां भारी हो रही हैं।
पूरक के बाद अन्तःकुंभक करें-श्वास को सुखपूर्वक अन्दर रोके रहें। फिर धीमे-धीमे रेचन करें।
पूरक और रेचन का समय समान और कुंभक का समय उससे आधा होना चाहिए।
यह क्रिया बढ़ाते-बढ़ाते पन्द्रह-बीस बार तक करनी चाहिए। वीर्य के ऊर्ध्वारोहण का संकल्प जितना दृढ़ और स्पष्ट होगा, उतनी ही कामवासना कम होती जाएगी। कुक्कुडासन
इससे कामवाहिनी स्नायुओं पर दबाव पड़ता है। उससे मन शक्तिशाली और प्रशान्त होता है, काम-वासना क्षीण होती है।
मन की स्थिरता होने से वायु की स्थिरता होती है। वायु की स्थिरता से वीर्य को स्थिरता होती है। वीर्य की स्थिरता से शरीर की स्थिरता प्राप्त होती है। कहा भी है
मनः स्थैर्य स्थिरो वायुः, ततो बिन्दु स्थिरो भवेत् ।
बिन्दुस्थैर्यात् सदा सत्त्वं, पिण्डस्थैर्यं च जायते । ऊर्ध्वाकर्षण की प्रक्रिया केवल पुरुषों के लिए है। स्त्रियों के लिए संकल्प-शुद्धि का अभ्यास सहायक हो सकता है।
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