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________________ १०८ । तट दो : प्रवाह एक का निषेध क्यों किया गया ? ब्रह्मचर्य के उपाय __ अब्रह्मचर्य एक आवेग है। हर आवेग पर मनुष्य अपनी नियंत्रण-शक्ति से विजय पाता है। मन की नियंत्रण-शक्ति का विकास ब्रह्मचर्य का प्रमुख उपाय है। पर यह प्रथम उपाय नहीं है। प्रथम है ब्रह्मचर्य के प्रति गाढ़ श्रद्धा होना। दूसरा है वीर्य या रक्त के प्रवाह को मोड़ने की साधना । इससे ब्रह्मचर्य जितना सहज हो सकता है, उतना नियंत्रण-शक्ति से नहीं। काम-वासना मस्तिष्क के पिछले भाग में प्रारम्भ होती है, इसलिए जैसे ही वह उभरे वैसे ही उस स्थान में मन को एकाग्र कर कोई शुभ संकल्प किया जाए, जिससे वह उभार शान्त हो जाए। पेट में मल, मूत्र और वायु का दबाव बढ़ने से काम-वाहिनी नाड़ियां उत्तेजित होती हैं। खान-पान और मल-शुद्धि में सजग रहना ब्रह्मचर्य की बहुत बड़ी शर्त है । वायु-विकार न बढ़े, इस ओर ध्यान देना भी बहुत ही आवश्यक है। काम-जनक अवयवों के स्पर्श से भी वासना बहत अपेक्षित है। इन सारी बातों का ब्रह्मचर्य के परिपार्श्व में बहुत महत्त्व है पर इस सबसे जिसका अधिक महत्त्व है,वह है वीर्य या रक्त-प्रवाह को मोड़ने की प्रक्रिया। उसकी कुछ विधियां इस प्रकार हैं : ऊर्ध्वाकर्षण (क) सिद्धासन में बैठे। श्वास का रेचन करें-बाहर निकालें । बाह्यकुंभक करें-श्वास को बाहर रोके हुए रहें । इस स्थिति में संकल्प करेंवीर्य रक्त के साथ मिलकर समूचे शरीर में बूम रहा है। वीर्य का प्रवाह ऊपर की ओर हो रहा है। ___ संकल्प इतनी तन्मयता से करें कि वैसा प्रत्यक्ष अनुभव होने लगे। जितनी देर सुविधा से कर सकें, यह संकल्प करें, फिर पूरक करें--श्वास को अन्दर भरें। पूरक की स्थिति में मूल बन्ध करें--गुदा को ऊपर की ओर खींचें तथा जालन्धर बंध करें--ठुड्डी को तानकर कण्ठ-कूप में लगाएं। फिर पेट को सिकोड़ें और फुलाएं। आराम से जितनी बार ऐसा कर सकें करें, फिर रेचन करें। यह एक क्रिया हुई । इसे अभ्यास बढ़ाते-बढ़ाते सात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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