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सन्तोका साम्राज्य
विचार सन्तोंका साम्राज्य है। सन्त-विचार सिर्फ़ माथेकी उपज नहीं, वह द्विजन्मा होता है। मस्तिष्कसे हृदयमें उतरता है, वहाँ पकनेपर फिर बाहर आता है ।
भेद-रेखा
सामाजिक जीवन सुविधा देता है, दर्शन नहीं। इसमें वर्तमानको सरल बनाये रखनेका प्रयत्न होता है, भूत और भविष्यका विश्लेषण नहीं।
माव और अनुभाव
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