________________
रोटी और पुरुषार्थ आचारके लिए रोटीको ठुकरानेमें पुरुषार्थ है; रोटीके लिए आचारको ठुकराने में पुरुषार्थ नहीं, उसका अभाव है।
रोटीका दर्शन आत्मा और परमात्माके गहरे चिन्तनमें डुबकी लगानेवाला भारतीय आज रोटी-दर्शनकी ओर टकटकी बाँधे बैठा है। पहले वह रोटीकी चिन्तासे मुक्त होकर ही वहाँतक पहुँचा। आज वह वहाँ नहीं पहुँचकर रोटोकी चिन्तासे मुक्त नहीं है ।
भाव और अनुभाव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org