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अश्रुवीणा / ६३
'कुत्सने।
नाम प्रकाश्य संभाव्यक्रोधोपगम कुत्सने। अमर. 3.3.251
विलयम् - विनाशम्, मृत्युम् अन्तम् वा। वि उपसर्ग पूर्वक ली श्लेषणे धातु से अच् एवं द्वितीया एकवचन । दिवसोऽनुमित्रमगमद् विलयम् - शिशुपालवध (9.17), विलयं नाशम्
- सर्वंकषा टीका व्रजति - गच्छति । व्रज गतौ लट्लकार प्रथम पुरुष एकवचन का रूप। विनाश को प्राप्त हो जाता है। सभी प्रकार के संघर्ष श्रद्धा की भूमि पर, प्राण के राज्य में आकर समाप्त हो जाते हैं -- इस तथ्य का सुन्दर प्रतिपादन कवि ने किया है। प्रसंगानुकूल शब्दों का विनियोजन हुआ। अनुप्रास की श्रुति रमणीयता विद्यमान है।
श्रद्धास्वादो न खलु रसितो हारितं तेन जन्म – जिसने श्रद्धा का स्वाद नहीं चखा वह जन्म ही हार गया अर्थात् उसका जन्म ही वृथा हो जाता है। उपचारवक्रता का सुन्दर उदाहरण है। श्रद्धा का स्वाद मूर्त विषय को अमूर्त पर आरोपण हुआ है। अच्छी सूक्ति बन गई है।
खलु - यह अव्यय पद है जो निम्नलिखित अर्थों में प्रयुक्त होता है - 1. निस्संदेह, निश्चय ही, अवश्य, सचमुच। 2. अनुरोध, अनुनय-विनय, प्रार्थना। 3. 'पूछताछ 4. प्रतिषेध 5. तर्क 6. पूरक के रूप में 7. कभी-कभी वाक्यांलकार के रूप में।
संस्कृत-हिन्दी कोश, आप्टे, पृ. 325 निषेधवाक्यालंकारे जिज्ञासानुनये खलु।
अमरकोश 3.4.255
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