________________
६२ । अश्रुवीणा
अविवेकः परमापदां पदम् - किरात. 2.30 अर्थात् अविवेक विपत्तियों का आवास स्थल है। दिवादिगणीय पद-गतौ धातु से अच्, नपुंसकलिंग में पदम् शब्द है। पद - स्थैर्ये (अमरकोश टीका) से भी पद शब्द व्युत्पन्न माना जाता है। अमरकोश कार ने पदम्' को व्यवसाय, रक्षा, स्थान, चिह्न, पैर, शब्द, वाक्य आदि का वाचक माना है। पदं व्यवसितित्राणस्थान लक्ष्मा िवस्तुषु ।
अमर. 3.3.93 सर्वं द्वैधं – विलयं व्रजति - सभी प्रकार के संघर्ष विश्वास की भूमि पर निश्चय ही समाप्त हो जाते हैं।
सर्वम् -- सर्व शब्द के नपुंसक लिंग। द्वैधं का विशेषण। यह सम्पूर्ण, समस्त, कृत्स्न आदि का वाचन है --
अथ समं सर्वम् विश्वमशेषं कृत्स्नं समस्तनिखिलाखिलानि निशेषम्। समग्रं सकलं पूर्णमखण्डं स्यादनूनके ॥
अमरकोश 3.1.64-65 द्वैधम् - द्वि + धमुञ् नपुंसकलिंग।
द्वैतावस्था, विविधता, भिन्नता, संघर्ष, विवाद, विभेद आदि अर्थों का वाचक है। प्रस्तुत संदर्भ में संघर्ष, विवाद, भिन्नता आदि अर्थ ग्राह्य हैं।
विश्वासभूमौ - विश्वास की भूमि पर, श्रद्धा के धरातल पर, सप्तमी एकवचन। विश्वास पद प्रत्यय, भरोसा, निष्ठा, विश्रम्भ आदि अर्थों का वाचक है। यह वि उपसर्गपूर्वक श्वस प्राणने' धातु से घञ् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। जहाँ विशेष रूप से प्राण का सम्बन्ध हो जाए, अकाट्य निष्ठा हो जाए उसको विश्वास कहते हैं। समौ विश्रम्भविश्वासौ -
अमरकोश 2.8.23 नाम – यह अव्यय पद है। नामधारी, नामक निस्सन्देह, निश्चय ही, सचमुच, वास्तव में अवश्य आदि अर्थों का वाचक है।
प्रस्तुत संदर्भ में 'निश्चय ही' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org