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"अश्रुवीणा" में श्रद्धा का स्वरूप / ४३
यह मोक्षमार्ग की साधिका है। जब तक पूर्ण श्रद्धा का उपचय नहीं होता, तब तक संसार में किसी भी श्रेष्ठ पदार्थ की प्राप्ति संभव नहीं है ।गीता में गोविन्द की उक्ति है:
ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः।
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः॥" इस प्रकार अश्रुवीणा में श्रद्धा का चित्रण अत्यन्त रमणीय है। विशेष के लिए प्रथम श्लोक की व्याख्या देखें।
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पाद-टिप्पण १. पाणिनि-अष्टाध्यायी ३/३/१०४ ८. तत्रैव, पृ० २४८ २. वाल्मीकिरामायण, २/३८/२ ९. चिंतामणि भाग, पृ० १७ ३. अमरकोश, ३/३/१०२ श्रद्धा १०. अश्रुवीणा-श्लोक संख्या १३ सम्प्रत्ययः स्पृहाः
११. तत्रैव "१ ४. वाचस्पत्यम् पृ० ५/४९ १२. सोशल सायकोलॉजी, पृ० १११ ५. धवला १/१, १, ११, ११६/७ १३. चिन्तामणि भाग 1 पृ० २१/२२
पंचाध्यायी, उत्तरार्ध, श्लोक संख्या १४. अश्रुवीणा-श्लोक संख्या ७४ ४१२
१५. नारद-भक्ति सूत्र Mental and Moral
१६. अश्रुवीणा ५४ Science, Page 247
१७. श्रीमद्भगवद्गीता ३/३१
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