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कृतज्ञता ज्ञापन अश्रुवीणा एक श्रेष्ठ ऋषि एवं क्रान्तकवि की अमर रचना है। इसका एकएक पद महान् अर्थ को संगोपित किए हुए है। इसकी व्याख्या, इसके पदों के हार्द को जानना मेरे वश की नहीं है। 14.7.98 को लगभग 2.30 बजे सरदारशहर में पूज्य अनुशास्ता एवं प्रस्तुत ग्रंथ के कवि आचार्यश्री महाप्रज्ञ का अवितथ आशीर्वाद मिला-"सारा कार्य छोड़कर अश्रुवीणावाला कार्य पूरा करो, जिससे कि नवम्बर में होने वाली संगोष्ठी में इसे विद्वानों को उपलब्ध कराया जा सके। " यहीं आशीर्वाद इस कार्य में सहयोगी बना, मुझे सामर्थ्यवान् बना दिया।
पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी (अदेही रूप) का आशीर्वचन और चिन्मय रूप इस यात्रा में सहायक बना। शब्द और अर्थ दोनों आदरणीय आचार्य महाप्रज्ञ के हैं, उन्हीं को समर्पित। पूज्या साध्वी प्रमुखा, युवाचार्य श्री एवं अन्य चारित्रात्माओं की शुभाशंसा मुझे पाथेय के रूप में प्राप्त है।
पूज्य पिता डा. श्री शिवदत्त पाण्डेय भैया-श्रीहरिहर पाण्डेय अनुजवर्ग-रामाशंकर, सच्चितानन्द आदि सबका आशीष एवं सहयोग मुझे प्राप्त है। स्वर्गगता माता-देवसुन्दरी एवं चाचा हरक्षण शब्द, अर्थ और शक्ति तीनों का सम्प्रेषण करते रहते हैं-उनको प्रणाम । केवल प्रणाम । पूज्य जीजोजी श्री गोपालकृष्ण उपाध्याय का अनाविल-स्नेह एवं उनकी निरभिलाष-कर्म कुशलता ने मुझे सशक्त और उत्साहवान् बनाया है। गुरु पूज्य प्रो.डा. राय अश्विनी कुमार का मार्गदर्शन अहर्निश प्राप्त है। आदरणीय गुरु डा. लक्ष्मीनारायण चौबे ने दिग्मूढ़ चेतना को स्फूर्त किया है। इसमें जो कुछ भी गुणवत्ता है-सब गुरुओं का है और दोष मेरे हैं। छात्र, शिक्षक एवं सुधी पाठकों का यत्किञ्चित् भी उपकार होगा तो मेरी कृतार्थता हो जाएगी।
दीपावली, 1998 लाडनूं
गुरु पादानुचर हरिशंकर पाण्डेय
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