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________________ मानसिक स्वास्थ्य और नमस्कार महामंत्र : ७६ भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाता है। उसके पांच स्थान हैं। पांच इन्द्रियां--श्रोत्र इन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय, घ्राण इन्द्रिय, रस इन्द्रिय और स्पर्शन इन्द्रिय। दूसरे पांच स्थान हैं—मन, वचन, शरीर, श्वास और आयुष्य (जीवनी शक्ति)। ये दस स्थान हैं, दस प्राण हैं। तैजस शरीर से प्रभावित होने वाली यह प्राणधारा शरीर के इन दस मूल स्थानों को सक्रिय बनाती है, उन्हें परिचालित करती है। इनके कार्य भिन्न-भिन्न हैं और स्थान भिन्न-भिन्न हैं। हम दस प्राण से इन्हें पहचानते हैं। वास्तव में प्राण एक ही होता है। आयुर्वेद में प्राण को पांच भागों में विभक्त किया है—प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। प्राण का मुख्य स्थान है हृदय (आनन्द केन्द्र)। अपान का मुख्य स्थान है गुदा (शक्ति केन्द्र)। समान का मुख्य स्थान है नाभि (तैजस केन्द्र)। उदान का मुख्य स्थान है कण्ठ (विशुद्धि केन्द्र)। व्यान समूचे शरीर में व्याप्त है, किन्तु वह परिचालित होता है दर्शनकेन्द्र के द्वारा। ___ शरीर के सभी मुख्य केन्द्र मस्तिष्क में हैं। ये सक्रिय होते हैं प्राण के द्वारा। प्राण सूर्य की ऊष्मा को लेता है और चक्षु को सक्रिय बनाता है। समान प्राणधारा मन को सक्रिय बनाती है। अपान प्राणधारा हमारे समूचे शक्ति-तंत्र को सक्रिय बनाती है। शक्ति का मुख्य स्थान है—अपान का स्थान, नाभि से शक्ति केन्द्र तक का स्थान | व्यान प्राण हमारी श्रोत-शक्ति को सक्रिय बनाता है। उदान प्राण कंठ से ऊपर की सारी शक्ति को सक्रिय करता है। नमस्कार महामंत्र की आराधना जब प्राणशक्ति के साथ जुड़ जाती है तब हमारा मन इतना स्वस्थ होता है कि सामान्यतः उस स्वास्थ्य की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती। वह मन स्वस्थ होता है, जिसमें प्रसन्नता का अजस्र स्रोत फूट पड़ता है, जिसमें निर्ममत्व भाव का विकास है, जिसमें बुरे विचार नहीं आते, जिसमें उत्तेजना नहीं आती, जिसको वासना नहीं सताती। महर्षि चरक ने स्वास्थ्य के लिए कुछ मानदंड स्थापित किए हैं, उनमें जितेन्द्रियता और मन की प्रसन्नता को भी माना है। शारीरिक स्वास्थ्य के कुछ मानदंड हैं और ये दो मानदंड मानसिक स्वास्थ्य के हैं। उन्होनें कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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