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________________ ७८ : एसो पंच णमोक्कारो कापालिक अपनी महाशक्ति के द्वारा उन्हें भस्म कर देना चाहता था। उसने शक्ति का प्रयोग किया। मुनि सुदर्शन को शक्ति का भान हो गया। वे तत्काल कायोत्सर्ग में स्थित हो गए। उन्होंने अपनी पवित्र लेश्याओं द्वारा और अपनी जागरूकता के द्वारा अपने आभामंडल को इतना शक्तिशाली बना दिया कि वह महाशक्ति उस आभा-वलय को भेदकर मुनि सुदर्शन तक नहीं पहुंच सकी। उसने लौटकर प्रयोक्ता को ही जला डाला। जब अप्रमाद और वीतरागभाव जागृत होता है तब कोई भी उस व्यक्ति को सता नहीं सकता। मंत्र मन के संक्लेशों को दूर करने का बहुत बड़ा माध्यम है। इसीलिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह चिकित्सा बन जाता है। जब हम अर्हत् का ध्यान करते हैं तब मन के संक्लेश दूर होते हैं। जब हम अर्हत् को अपने में अनुभव करते हैं तब शरीर का कण-कण वज्रमय बनने लग जाता है, एक वज्रमय कवच तैयार हो जाता है। दुर्योधन गांधारी के सामने खड़ा हुआ। उसने देखा और वज्रमय बन गया। दूसरे की वेधक दृष्टि से प्रस्फुट होने वाली तेजोलेश्या के द्वारा जब दूसरे का शरीर वज्रमय बन जाता है तब शरीर के कण-कण पर ध्यान करने से वह वज्रमय क्यों नहीं बनेगा ? हम अति कल्पना न करें कि ५-१० दिनों के अभ्यास से यह वैसा बन जाएगा। किन्तु मंत्र का अभ्यास यदि विधिपूर्वक चले और वह लंबे समय तक चलता रहे तो यह संभव है कि शरीर का कण-कण इतना सक्रिय और जागृत हो सकता है कि बाहरी शक्ति फिर उसे प्रभावित नहीं कर सकती। फिर मन के अस्वस्थ होने की बात ही समाप्त हो जाती है। ___ मंत्र-साधना में प्राण का बहुत बड़ा महत्त्व है। जब तक हम प्राणशक्ति को नहीं समझते तब तक मंत्र की वास्तविकता भी हमारी समझ में नहीं आ सकती। हमारा समूचा जीवन-तंत्र प्राणशक्ति के द्वारा संचालित होता है। तैजस शरीर प्राणशक्ति या जैविक विद्युत् का बड़ा खजाना है। प्राणधारा उस विद्युत् को समूचे शरीर में फैलाती है। प्राणधारा तैजस शरीर से निकलती है। वह प्राणधारा दस भागों में विभक्त है। प्राण एक ही है। प्राण दो नहीं हो सकते। किन्तु स्थान-भेद और कार्य-भेद के आधार पर एक ही प्राण दस भागों में बंट जाता है। दस स्थान हैं जहां से प्राण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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