________________
मानसिक स्वास्थ्य और नमस्कार महामंत्र : ७७
प्रभावित भी होते हैं। हमारे जीवन का सारा तंत्र प्रभावित होता है। जब हम मन को विकल्प दे देते हैं, एक विशाल, उदात्त और पवित्र मंत्र दे देते हैं, तब सारे विकल्प क्षीण हो जाते हैं और मंत्र का विकल्प पुष्ट होने लगता है। मां बच्चे को मिट्टी खाने से रोकती है, बच्चा नहीं मानता। मां उसके हाथ में वंशलोचन दे देती है। बच्चा मिट्टी खाना छोड़ देता है । यह एक विकल्प है। आचरण के विषय में भी यही बात है। जब तक कोई पवित्र, उदात्त विकल्प प्रस्तुत नहीं किया जाता तब तक पहले वाला आचरण, पहले की धारणा नहीं छूट पाती। ___मंत्र की आराधना के द्वारा, मंत्र की चिकित्सा के द्वारा मन को स्वस्थ बनाने का पहला उपाय है--मन को सुन्दर विकल्प देना, उसे एक विधायक मार्ग दे देना और उससे मन के भटकाव को सीमित कर देना।
दसरा उपाय है-मन को संक्लेश से शून्य कर देना। मन में अनेक संक्लेश होते हैं। जब संक्लेश होते हैं तब सब सताते हैं। जब मन का संक्लेश दूर हो जाता है तब उस व्यक्ति को कोई नहीं सताता।
नैव देवा न गन्धर्वा, न पिशाचा न राक्षसाः।
न चान्ये स्वयमक्लिष्टं, उपक्लिश्यन्ति मानवम् ।। ----- 'देव, गन्धर्व, पिशाच, राक्षस या और कोई भी दूसरे, उस व्यक्ति को नहीं सताते, जिसका मन स्वयं क्लिष्ट नहीं होता, क्लेशयुक्त नहीं होता। उसी व्यक्ति को वे सताते हैं जिसका मन संक्लेश से भरा होता है।
आकांक्षा, मिथ्यादृष्टिकोण, प्रमाद, कषाय, मन की चंचलता, वाणी की चंचलता और शरीर की चंचलता--ये आंतरिक संक्लेश हैं। जब ये संक्लेश होते हैं, तब बाहर का आक्रमण होता है। जब मन में कोई संक्लेश नहीं होता, व्यक्ति अपने-आप में सुस्थिर होता है, व्यक्ति निष्कषाय और वीतराग होता है, अप्रमत्त और जागरूक होता है, उस व्यक्ति पर कोई आक्रमण नहीं कर पाता।
आगमों में बार-बार कहा गया है-'प्रमाद मत करो। प्रमत्त मत बनो।' इसके अनेक कारणों में से एक कारण यह है कि जो प्रमाद करता है, उसे ही प्रेतात्माएं सताती हैं। जो व्यक्ति सदा अप्रमत्त रहता है, जागरूक रहता है उसे कोई नहीं सताता |
मुनि सुदर्शन भगवान् पार्श्व की परंपरा के शक्तिसंपन्न मुनि थे। एक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org