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८. मानसिक स्वास्थ्य और नमस्कार महामंत्र
हृदय प्राण का केन्द्र, गुदा अपान का केन्द्र, नाभि समान का केन्द्र, कंट उदान का केन्द्र, व्यान सर्व शरीरगत-ये सब दर्शनकेन्द्र से परिचालित होते हैं। इन केन्द्रों को सक्रिय बनाए रखना मंत्र-चिकित्सा का उद्देश्य है। शब्द मनोभावों का वाहन। छह चैतन्य केन्द्रों में उसकी गति होती
है। वह अपान से प्रस्फुटित होती है। • दर्शनकेन्द्र और ज्येतिकेन्द्र मानस जप के उच्चारण के उद्भव-स्थान।
दो प्रकार के सिद्धांत हैं। एक है वर्जना का सिद्धांत और दूसरा है साधना का सिद्धान्त । वर्जना का सिद्धांत निषेधात्मक होता है, नेगेटिव होता है। साधना का सिद्धांत विधायक होता है, क्रियात्मक होता है, पॉजिटिव होता है। वर्जना का सिद्धांत मन को कम पकड़ता है। साधना के सिद्धांत के पीछे एक प्रक्रिया जुड़ी रहती है, एक अभ्यास-क्रम जुड़ा होता है। वह मन को पकड़ता है। जैसे-जैसे क्रम आगे बढ़ता है, साधना स्वयं जीवन में घटित होने लगती है। 'बुरे विचार मत करो'—यह वर्जना की बात करने मात्र से कोई व्यक्ति बुरे विचार भरना छोड़ देता है, यह संभावना करना बहुत कठिन बात है। किन्तु एक प्रक्रिया या एक अभ्यास का क्रम किसी व्यक्ति को दे देने पर वह बुरे विचार से छुटकारा पा सकता है।
मंत्र-साधना का एक उपक्रम है। यह साधना का सिद्धांत है, विकल्प है। हमारे मन में नाना प्रकार के विकल्प उठते रहते हैं और हम उनसे
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