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८० : एसो पंच णमोक्कारो
समदोषः समाग्निश्च, समधातुमलक्रियः। __ प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः, स्वस्थ इत्यभिधीयते ।। शारीरिक दृष्टि से स्वास्थ्य का विचार करने वाला व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य को नकार नहीं सकता। जिसका मन स्वस्थ नहीं होता उसका शरीर स्वस्थ नहीं हो सकता । इसीलिए मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों को शारीरिक स्वास्थ्य के साथ जोड़ा है।
नमस्कार महामंत्र की आराधना अनेक रूपों में की जाती है। उसके पांच पद और पैंतीस अक्षर हैं। इसकी आराधना बीजाक्षरों के साथ भी की जाती है और बिना बीजाक्षरों के, केवल मंत्राक्षरों के साथ भी की जाती है। इसकी आराधना—'एसो पंच णमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सवेसि, पढमं हवइ मंगलं'—इस चूलिका पद के साथ भी की जाती है और इस चूलिका पद के बिना भी की जाती है। नमस्कार महामंत्र की आराधना पांच पदों के संक्षिप्त रूप 'ॐ' में भी की जाती है। ॐ में पांचों पद सन्निहित हैं। अर्हत् का 'अ', अशरीरी (सिद्ध) का 'अ', आचार्य का 'आ', उपाध्याय का 'उ' और मुनि का 'म्'—इन आदि अक्षरों से ॐ निष्पन्न होता है। (अ+अ+अ आ+उ ओ+म्=ओम्) ॐ पूर्ण परमेष्ठी का वाचक है। महामंत्र की आराधना हींकार के रूप में भी की जाती है। पांचों पद 'ह्रींकार' में समा जाते हैं। महामंत्र की आराधना पांच पदों के आदि अक्षर ------अ, सि, आ, उ, सा, से निष्पन्न पंचाक्षरी मंत्र ‘अ सि आ उ सा' के रूप में भी की जाती है। यह पंचाक्षरी मंत्र बहुत प्रभावशाली है। इस महामंत्र की आराधना 'अहं' के रूप में भी की जाती है। ___इस प्रकार एक ही महामंत्र की आराधना भिन्न-भिन्न प्रयोजनों के लिए भिन्न-भिन्न रूपों में की जाती है। ॐ णमो अरहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं, ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं, आदि-आदि । ___ आज हमारे सामने प्रश्न है मन के स्वास्थ्य का। मन का स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है प्राणधारा के साथ । (जब प्राण को सक्रिय और निर्मल बनाना है तो नमस्कार महामंत्र की साधना प्राण के पांच बीजों के साथ करनी होगी। प्राणधारा के पांच बीज हैं-मैं पैं, 3, रैं, लैं। इन बीजाक्षारों के साथ महामंत्र की आराधना की जाती है।
मंत्र के तीन तत्त्व हैं--शब्द, संकल्प और साधना। मंत्र का पहला तत्त्व
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