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आध्यात्मिक चिकित्सा [२] : ७३
कर्म शरीर मे हैं। हम मंत्र को वहां तक पहुंचाएं। मंत्र की शक्ति उन सभी रोगों को भस्मसात कर देगी। फिर हम यह नहीं कहेंगे कि मंत्र के द्वारा कुछ नहीं होता।
यदि विधिपूर्वक मंत्र-चिकित्सा पद्धति का प्रयोग किया जाए तो कोई कारण नहीं कि आध्यात्मिक रोग न मिटें। आध्यात्मिक रोग, आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति और उस चिकित्सा पद्धति से संबद्ध प्रयोग—ये सारे तथ्य जव हमें प्राप्त हो जाते हैं तब हमें धीरे-धीरे यह अनुभव होने लगता है कि कषाय कम हो रहे हैं, क्रोध कम हो रहा है, मान कम हो रहा है। जब हम 'णमो' शब्द का उच्चारण करते हैं तब क्रोध कैसे टिकेगा ? मंत्र-शास्त्रीय दृष्टि से ‘णमो' शोधन-बीज है। यह शुद्धि करता है। जो आवेग आते हैं, उन्हें दूर करता है, उनकी शुद्धि करता है। जब शोधन-बीज का हम अभ्यास करते हैं तब शुद्धि कैसे नहीं होगी। जब ‘णमो' पद का उच्चारण करते हैं तो पौष्टिकता और शान्ति प्राप्त कैसे नहीं होगी ? वीमारी मिट जाए, इतना ही पर्याप्त नहीं है। बीमार पुष्ट भी होना चाहिए। बीमारी मिट गई
और शरीर यदि दुर्वल ही रहा तो कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता। कोरी बीमारी मिटे और कमजोरी न मिटे तो बीमारी फिर आ जाती है। डॉक्टर दवा के बाद टॉनिक भी देता है। ‘णमो' दवा भी है और टॉनिक भी है। यह आध्यात्मिक बीमारी को मिटाने के साथ-साथ आत्मा को शक्तिशाली भी बनाता है। आत्मा में इतना बल संचित हो जाता है कि फिर आवेग और कषाय आत्मा की परिधि में जाने का साहस ही नहीं करते। __ अध्यात्म चिकित्सा के सूत्रों और पूरी प्रक्रिया को समझ लेने के पश्चात् हम इस चर्चा को भी प्रस्तुत करेंगे कि किस प्रकार इस महामंत्र के द्वारा मन और शरीर की बीमारियां भी मिट सकती हैं ? उनका उपचार कैसे किया जा सकता है ?
अध्यात्म की तीन वीमारियां हैं जो कषाय के द्वारा प्रकट होती हैं— आवरण, विकार और अन्तराय (अवरोध या प्रतिरोध)। ये तीन बीमारियां हमारे भीतर हैं। ___ हम सब कुछ जानना चाहते हैं, किन्तु आवरण की बीमारी इतनी बड़ी है कि हम कुछ भी जान नहीं पाते। हम पवित्र रहना चाहते हैं किन्तु मूर्छा और विकृति की इतनी बड़ी बीमारी है कि हमारा मन पवित्र नहीं रहता।
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