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________________ ७२ : एसो पंच णमोक्कारो गया है कि किस प्रकार मानसिक बीमारियां शरीर में प्रकट होती हैं। उनकी भाषा में पित्त है—क्रोध। क्रोध आता है और पित्त कुपित हो जाता है, बीमारी हो जाती है। हम इस तथ्य को विस्मृत न करें कि बहुत सारी बीमारियों की जड़ें हमारे मन में होती हैं, उससे भी आगे प्राण में होती हैं और उससे भी आगे आवेगों में होती हैं। ___हमारे पास तीन साधन हैं—स्मृति, बुद्धि और आवेग (इमोशन)। स्मृति का स्तर बहुत ऊपरी है। उससे गहरे में है बुद्धि का स्तर और उससे भी गहरे में है आवेग का स्तर | आवेग इतने गहरे में जन्मते हैं कि बुद्धि उनसे परे रह जाती है और स्मृति उससे और परे रह जाती है। क्रम यह है --सबसे पहले स्मृति, फिर बुद्धि और फिर आवेग। जब मैं कर्मशास्त्र की भाषावली देखता हूं तब मुझे लगता है कि इस कथन में बहुत बड़ी सचाई प्रकट हुई है। जब क्रोध, मान, माया और लोभ होता है तब कर्म शरीर का निर्माण होता है, तैजस शरीर बनता है, स्थूल शरीर बनता है, प्राणशक्ति बनती है, मन बनता है, बुद्धि बनती है, इन्द्रियां बनती हैं। यदि ये चार आवेग समाप्त हो जाएं तो कुछ भी नहीं बन सकता। आवेग बहुत गहरे में हैं। ये आवेग आध्यात्मिक बीमारियां हैं। जब तक इन आवेगों की, कषायों की चिकित्सा नहीं की जाती, कषायों का शमन या नाश नहीं किया जाता तब तक न मन की शांति ही प्राप्त हो सकती है और न शरीर ही स्वस्थ हो सकता है। ___मैं इसे कभी अस्वीकार नहीं करता कि बाहरी निमित्तों से, कीटाणुओं से कोई बीमारी नहीं होती, कोई कठिनाई नहीं आती। बाहरी निमित्तों से भी रोग होते हैं, कठिनाइयां आती हैं। आदमी चलता है। ठोकर लगती है। गिरते ही हड्डी टूट जाती है। यह निमित्त से उत्पन्न बीमारी है। इसी प्रकार कीटाणुओं से भी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। हम यह भी स्वीकार करें कि अध्यात्म में अनेक रोगों का उत्स है। जब तक मंत्र अध्यात्म तक नहीं पहुंचता, आध्यात्मिक चिकित्सा नहीं हो सकती। मंत्र को प्राण के स्तर तक और आवेग के स्तर तक ले जाना होगा। वहां पहुंचकर मंत्र उन रोगों की चिकित्सा कर देगा। रोग मिट जाएंगे। बीमारी बहुत गहरे में है और मंत्र ऊपरी स्तर पर है तो कुछ लाभ नहीं होगा। रोग तैजस शरीर और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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