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७० : एसो पंच णमोक्कारो
तब हमारा स्थूल मन सक्रिय होता है, चेतन मन सक्रिय होता है। जब हम सोते हैं तब हमारा अन्तर्मन सक्रिय हो जाता है, चेतन मन सो जाता है। जब चेतन मन से सुझाव को अवचेतन मन पकड़ लेता है, अन्तर्मन पकड़ लेता है तो वह सुझाव बहुत शक्तिशाली बन जाता है। वह रोम-रोम में व्याप्त हो जाता है। ___ योग के आचार्य बतलाते हैं कि कोई भावना या संकल्प करना हो, अपने आपको कोई सुझाव देना हो तो वह पूरक के समय दो। जब श्वास को भीतर खींचो तब उसके साथ सुझाव को जोड़ दो। जो सुझाव श्वास के साथ भीतर जाता है, वह अन्तर्मन में व्याप्त हो जाता है। जो सुझाव रेचन के समय, श्वास निकालते समय दिया जाता है, उसका कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। पूरक के समय सुझाव देकर, श्वास का संयम या कुंभक कर, उस पर ध्यान कर लिया जाता है तो वह बात बहुत गहरे में पहुंच जाती है। वह अवचेतन मन तक पहुंच जाती है। तब हमारा संकल्प बहुत शक्तिशाली और भावना फलवती हो जाती है।
इसलिए यह बात बार-बार कही जाती है कि जब तक साधक शरीर में होने वाली चैतन्य की प्रक्रिया को, शरीर में होने वाले स्पन्दनों की प्रक्रिया को नहीं समझता, तब तक कितने ही बड़े मंत्र की उपासना की जाए, उससे वह लाभ नहीं मिलता, जितना उससे मिलना चाहिए।
नमस्कार महामंत्र बहुत बड़ी चिकित्सा पद्धति है। यह चिकित्सा की आध्यात्मिक पद्धति है। इस संदर्भ में एक प्रश्न उभरता है—क्या बीमारी भी आध्यात्मिक होती है, जिसकी चिकित्सा के लिए आध्यात्मिक चिकित्सा चाहिए ? यह तथ्य है, आध्यात्मिक रोग होते हैं, बीमारियां होती हैं। उनकी चिकित्सा के लिए नमस्कार महामंत्र अनुपम चिकित्सा पद्धति है। ___ आध्यात्मिक रोग कौन-कौन-से हैं ? सूत्रकृतांग सूत्र में महावीर की स्तुति के प्रसंग में बताया है कि महावीर ने क्रोध, मान, माया और लोभ-इन चार आध्यात्मिक दोषों को समाप्त कर दिया। ये चारों आध्यात्मिक रोग हैं। जब तक आध्यात्मिक रोग समाप्त नहीं होते तब तक शरीर की बीमारियां भी कभी समाप्त नहीं होतीं। सबसे पहले आध्यात्मिक रोग होता है, फिर प्राणिक रोग होता है, फिर मन का रोग होता है और अन्त में शरीर का रोग होता है। शरीर में बीमारी अभिव्यक्त होती है।
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