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________________ ६८. : एसो पंच णमोक्कारो विधिपूर्वक कर रहे हैं, वे आगे बढ़ रहे हैं, उन्हें कुछ अनुभव भी होने लगा है। हम ‘णमो अरहंताणं' का ध्यान श्वेत वर्ण में करते हैं। चार-पांच दिनों में ये सातों अक्षर सफेद वर्ण में चमकते हुए दीखने लग जाते हैं। कुछ व्यक्तियों को और अधिक समय लगता है। यह सही है कि जो साधक निरंतर तीन या छह महीने तक यह ध्यान विधिपूर्वक करता है, वर्ण उसकी आंखों के सामने स्पष्ट हो जाते हैं। नमस्कार महामंत्र के पांच पद हैं और पांचों के पांच भिन्न-भिन्न वर्ण हैं। अर्हत् का वर्ण है श्वेत, सिद्ध का वर्ण है लाल, आचार्य का वर्ण है नीला, उपाध्याय का वर्ण है पीला और मुनि का वर्ण है काला। नमस्कार महामंत्र की उपासना करने वाला साधक ‘णमो अरहंताणं' को श्वेत वर्ण में, ‘णमो सिद्धाणं' को लाल वर्ण में, ‘णमो आयरियाणं' को पीले वर्ण में, ‘णमो उवज्झायाणं' को नीले वर्ण में और ‘णमो लोए सव्व साहूणं' को काले वर्ण में लिखें। आंखें बन्द कर उन सभी अक्षरों को पढ़ें। चमकते हुए रंगों में ये सारे वर्ण बन्द आंखों के सामने स्पष्ट हो जाएंगे। इस अभ्यास की संपूर्ति के लिए तीन या छह महीने का समय अपेक्षित है। जिस व्यक्ति का मन संवेदनशील होता है वह जल्दी पकड़ लेता है। जो व्यक्ति कम संवेदनशील होता है, उसे पकड़ने में समय लग सकता है। समय की लंबाई होने से यह न समझे कि कार्य विधिपूर्वक नहीं हो रहा है। हम विधिपूर्वक ही कर रहे हैं, परन्तु सफलता की प्राप्ति व्यक्ति के संस्कार-सापेक्ष और समय-सापेक्ष होती है। दस दिन के शिविर-काल में भी कुछ-कुछ अभ्यास हो ही जाता है। सबका अपना-अपना अनुभव होता है। जव अनुभव होता है तव व्यक्ति सोचता है.-अरे ! यह मार्ग तो बहुत अच्छा था। हमने इतने दिन तक ध्यान ही नहीं दिया। नमस्कार महामंत्र की उपासना विधिपूर्वक की जाए। शब्द से अशब्द तक, शब्द से अर्थ तक और स्व-स्वरतंत्र के स्पंदनों से प्राण की धारा तक, प्राण के स्रोत तक ले जाया जाए तो मंत्र की शक्ति जागृत होती है। मन्त्रशक्ति के जागृत होने पर यह संदेह नहीं रहता कि इस ध्यान से परिवर्तन हो रहा है या नहीं ? कुछ प्राप्त हो रहा है या नहीं ? शब्द से अशब्द तक, शब्द से प्राण तक कैसे ले जाया जाए-इस प्रक्रिया की चर्चा पहले ही हो चुकी है, फिर भी संक्षेप में उसकी चर्चा कर दूं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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