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आध्यात्मिक चिकित्सा [२] : ६७
नहीं आती तब तक आरोहण नहीं हो सकता | पूरी विधि ज्ञात हुए बिना सफलता नहीं मिलती।
प्राचीन समय की बात है। आचार्य पादलिप्त आकाश में उड़ने की शक्ति से संपन्न थे। वे मंत्र या तंत्र के द्वारा नहीं, किन्तु पैरों पर रासायनिक लेप कर आकाश में उड़ान भर लेते। बहुत लम्बी यात्रा कर लौटते। उस समय के प्रसिद्ध रसायनशास्त्री नागार्जुन ने यह जाना । उन्होंने आचार्य का शिष्यत्व स्वीकार किया। जब आचार्य पादलिप्त आकाश में उड़कर पृथ्वी पर लौटते तब नागार्जुन उनका पाद-प्रक्षालन करते और उस लेप में रहे द्रव्यों को जानने के लिए उस पानी को सूंघते और आस्वादन लेते। प्रतिदिन यह क्रम चलता रहा। वे स्वयं बड़े वैज्ञानिक और रसायनशास्त्री थे। धीरे-धीरे वे उस लेप के सारे पदार्थों को पहचानने में सफल हो गए। वे अपने घर गए। उन्हीं पदार्थों से लेप तैयार कर अपने पैरों पर लगाया। वे आकाश में उछलने लगे। जमीन पर आते और फिर आकाश में उछलते। जैसे मुर्गा उछलता है वैसे ही उनकी उड़ान होती। उड़ने में वे सफल नहीं हो सके। वे आचार्य के पास आए और लेप में मिश्रित द्रव्यों की जानकारी देने की प्रार्थना करने लगे। आचार्य पादलिप्त को सारी जानकारी हो चुकी थी। शिष्य की सुपात्रता देखकर आचार्य ने कहा-और वस्तुओं को तो तुमने पकड़ लिया, किन्तु इन वस्तुओं के साथ चावल का मांड़ मिलाया जाता है, उसे तुम नहीं पकड़ सके। तुम चावल के मांड़ से लेप तैयार करो। नागार्जुन ने वैसा ही किया और वे इस लेप के माध्यम से आकाश की लंबी यात्रा करने में सफल हो गए।
विधि विधि होती है। जब तक पूरी विधि ज्ञात नहीं होती तब तक कुछ नहीं हो सकता। ___ कार्य तीन प्रकार के होते हैं—अकृत, अविधिकृत और विधिकृत । एक आदमी कोई काम करता ही नहीं। वह कार्य अकृत ही रहता है। एक आदमी कोई कार्य करता है, किन्तु विधिपूर्वक नहीं करता। उससे भी जो उपलब्ध होना चाहिए, वह उपलब्ध नहीं होता। वह अविधिकृत कार्य है। एक आदमी कोई कार्य विधिपूर्वक करता है। वह बहुत जल्दी सफल हो जाता है। वह विधिकृत कार्य है।
हम यह प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं कि जो लोग प्रेक्षा-ध्यान को
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