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आध्यात्मिक चिकित्सा [२] : ६५
भूमिका को पारकर प्राणमय नहीं बन जाता, प्राण की भूमिका का आरोहण नहीं कर लेता तब तक मंत्र के द्वारा जो उपलब्धि होनी चाहिए, वह कभी नहीं हो सकती, चाहे हम उस मंत्र का जप वर्षों तक करते रहें, कुछ लाभ नहीं होगा। इसीलिए यह हमें समझ लेना है कि हमारा मंत्र शब्द की भूमिका को पार कर मन की भूमिका में जाए, मन की भूमिका को पार कर प्राण की भूमिका में जाए।
इस संदर्भ में हमें प्राण की दार्शनिक भूमिका को भी समझ लेना चाहिए। हम शरीर-प्रेक्षा करते हैं। कुछ लोग कहते हैं—शरीर को क्या देखें ? कौन-सा भगवान् या परमात्मा या इष्टदेव है जो हम इसे देखें ? ऐसा कहने वाले सचाई को विस्मृत कर देते हैं। मैं पूछना चाहता हूं—हमारा चैतन्यमय आत्मा या अर्हत् कहां है ? इस शरीर के भीतर है या अन्यत्र ? अनन्त ज्ञानसम्पन्न, अनन्त शक्तिसम्पन्न, अनन्त आनन्दसम्पन्न और अनन्त चेतनासम्पन्न जो आत्मा है, परमात्मा है, वह इसी शरीर के भीतर विराजमान है। आत्मा की शक्ति को बाहर प्रकट करने वाला कर्मशरीर कहां है ? वह सूक्ष्म शरीर भी इसी स्थूल शरीर के भीतर है। कर्मशरीर आत्मा से शक्ति उपलब्ध करता है। उस शक्ति को बाहर फेंकने का सबसे बड़ा माध्यम है तैजस शरीर। वह कहां है ? वह भी इसी शरीर के भीतर है, बाहर नहीं। तैजस शरीर के द्वारा सारी जीवन-यात्रा को संचालित करने वाली प्राणशक्ति कहां है ? वह भी इसी शरीर के भीतर है। प्राणशक्ति से संचालित होने वाले पांच इन्द्रिय प्राण, मन प्राण, वचन प्राण, काया प्राण, श्वासोच्छ्वास प्राण और आयुष्य प्राण-ये दशों प्राण कहां हैं ? ये भी शरीर में ही हैं। सव शरीर में हैं, बाहर नहीं। प्राणशक्तियां इसी शरीर में, प्राण का स्रोत इसी शरीर में, तैजस शरीर इसी शरीर में, कर्म शरीर इसी शरीर में और परम प्रभु आत्मा भी इसी शरीर में। कितना महत्त्वपूर्ण है यह शरीर । जब सब कुछ इसके भीतर है तब क्या स्थूल शरीर के दरवाजों को खोले बिना, उनमें प्रवेश किए बिना, क्या आत्मा तक पहुंचा जा सकता है ? सीधे आत्मा तक पहुंचने की बात तथ्यपूर्ण नहीं है। कुछेक शक्तिशाली व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्होंने अनेक जन्मों में अनेक प्रकार का तप तपा है, वे व्यक्ति सीधे आत्मा तक पहुंच सकते हैं। साधारण व्यक्ति सीधा आत्मा तक नहीं जा सकता। वे व्यक्ति अपवाद मात्र होते हैं। उनका अनुसरण नहीं किया जा
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