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६२ : एसो पंच णमोक्कारो
जाएगी। उस भूमिका में पहुंचकर हम कह सकेंगे कि हम जानते हैं, मानते नहीं । जब जानने की बात प्राप्त हो जाएगी तब शरीर भी छूट जाएगा। शरीर के छूटने पर, शरीर पर बनी ममत्व - ग्रन्थि के टूटने पर ममत्व टूटने लगेगा । शरीर के छूटने का अर्थ शरीर से अलग होना नहीं है, किन्तु शरीर के साथ जो ममकार है, वह छूट जाएगा, वह ढीला पड़ जाएगा ।
अनुप्रेक्षा के माध्यम से भ्रान्तियों और विपर्ययों को तोड़ा जा सकता है । अनुप्रेक्षा के द्वारा मन पर जमे मैल को काटा जा सकता है। अनुप्रेक्षा के द्वारा मानने की भूमिका से उठकर जानने की भूमिका तक पहुंचा जा सकता है ।
पांचवां तत्त्व है— प्रेक्षा । जब भावक्रिया, कायोत्सर्ग, भावना और अनुप्रेक्षा -- ये चारों आधारभूत तत्त्व सध जाते हैं तब प्रेक्षा की स्थिति मजबूत बन जाती है। हमारे देखने की शक्ति का विकास होता है । इससे चेतना को, ज्ञान को और दर्शन को दौड़ने के लिए, विकसित होने के लिए पूरा अवकाश प्राप्त हो जाता है । इस पूरी प्रक्रिया को समझ कर चलें, तब हम मंत्र की आराधना की उपयोगिता को समझ सकेंगे। यह पूरी प्रक्रिया जब ज्ञात नहीं होगी तब प्रेक्षा ध्यान के संदर्भ में मंत्र की आराधना का क्या उपयोग है, इसे भी हम समझ नहीं सकेंगे ।
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