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________________ ६० : एसो पंच णमोक्कारो नमस्कार मंत्र जैसे महामंत्र से अपने मन को भावित कर लिया, मंत्र की हजारों-लाखों आवृत्तियां कर मन को शक्तिसंपन्न बना लिया, वह व्यक्ति अप्रिय या प्रतिकूल घटनाओं को द्रष्टा बनकर देखता है, उनको भोगता नहीं। उन घटनाओं का उसके मन पर कोई असर नहीं होता। इस प्रतिरोधात्मक शक्ति के निर्माण के लिए, मन को भावित करने के लिए, एक सुदृढ़ कवच या वज्र-पंजर बनाने के लिए भावना का प्रयोग बहुत जरूरी है। भावना की बात प्रेक्षा-ध्यान के लिए प्रतिकूल नहीं है, किन्तु उसका आधारभूत तत्त्व है। इस आधार को मजबूत कर लेने पर प्रेक्षा-ध्यान सुविधापूर्वक हो सकता है। अवरोध समाप्त हो जाते हैं। चौथा तत्त्व है—अनुप्रेक्षा। हमारे मन पर प्रतिदिन मैल जमता है। वह मलिन होता है। शरीर पर जमने वाले मैल को साफ करने का उपाय मनुष्य प्रतिपल करता है। वह स्नान करता है, मंजन करता है, और-और उपाय भी करता है। मन पर भी मैल जमता है। मनुष्य इस मैल को हटाने के लिए नहीं सोचता। उसे यह भान ही नहीं है कि मन पर भी मैल जमता है, मन भी मलिन होता है। मन को साफ करने के लिए उसे पानी से नहलाने की आवश्यकता नहीं है, उसे साबुन या अन्य साधनों से धोने की आवश्यकता नहीं है। किन्तु उसे साफ करने के अन्य उपाय हैं। जब तक मन साफ नहीं होता, तब तक ध्यान की स्थिति ही नहीं बनती। जब मन की मलिनता मिट जाती है, साफ हो जाती है, तब ध्यान होने लगता है। जब आदमी बीमार होता है तब छटपटाता है, पैरों को पछाड़ता है, हाथों को पटकता है। जब आदमी सन्निपात अवस्था में होता है, हिस्टीरिया से ग्रस्त होता है या उन्माद या आवेश से भरता है तब उसमें एक विशेष शक्ति जागती है। दस आदमी भी उसे थाम नहीं पाते। इसी प्रकार जब मन बीमार होता है, मलिन होता है, मैल से ग्रस्त होता है तब छटपटाता है और मन भी अपने हाथ-पैर पछाड़ने लग जाता है। ऐसी स्थिति में मन एकाग्र नहीं हो सकता। ____ मन का मैल मिटाना बहुत जरूरी है। उसे धोना चाहिए। मन पर मूर्छा का मैल, मोह का मैल, ममत्व का मैल, राग-द्वेष का मैल, वासना का मैल, कषाय का मैल, न जाने कितने मैल हैं। इस स्थिति में प्रेक्षा वहां तक पहुंच ही नहीं सकती। अनुप्रेक्षा मन को पवित्र करने का, मन पर जमे मैल को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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